नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा)
Two Finger Test: मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगा दी है। यह जांच यह निर्धारित करने के लिए की जाती थी कि कहीं दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न की पीड़िता यौन संबंध बनाने की आदी तो नहीं है।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मेघालय के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 27 जून 2024 को एक परिपत्र जारी कर इस जांच पर रोक लगा दी है और इसका अनुपालन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने सात मई को पारित शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने ‘टू फिंगर टेस्ट’ के चलन की कड़ी निंदा की थी।
पीठ ने तीन सितंबर के अपने आदेश में कहा, ‘ मेघालय की ओर से पेश महाधिवक्ता अमित कुमार ने मेघालय सरकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से 27 जून 2024 को जारी एक परिपत्र प्रस्तुत किया है। इस परिपत्र में ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगाने और इसका अनुपालन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही गई है।’
पीठ ने यह आदेश एक दोषी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में पिछले वर्ष 23 मार्च के मेघालय उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसकी दोषसिद्धि की पुष्टि की थी। पीठ ने इस बात पर गौर किया कि दोषी को इस अपराध के लिए 10 साल की सजा सुनाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2022 के अपने एक फैसले में बलात्कार पीड़ितों पर ‘टू फिंगर टेस्ट’ की निंदा की थी और कहा था कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है बल्कि यह उन महिलाओं को फिर से परेशान करना है जिनका यौन उत्पीड़न हुआ है और यह उनकी गरिमा का अपमान है। शीर्ष अदालत ने तीन सितंबर को पारित अपने आदेश में मेघालय सरकार के परिपत्र का उल्लेख किया। परिपत्र में कहा गया, ‘सुप्रीम कोर्ट और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं पर टीएफटी के चलन पर रोक लगा दी है। यह प्रक्रिया वैज्ञानिक रूप से निराधार, आघात पहुंचाने वाली है और पीड़िता की गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन करती है।’
पीठ ने कहा, ‘ हमें उम्मीद और भरोसा है कि मेघालय राज्य द्वारा जारी उपरोक्त परिपत्र पर अमल किया जाएगा और उसका अक्षरशः पालन किया जाएगा। हमें उम्मीद है कि भविष्य में हमें इस तरह की गंभीर चूक के लिए मेघालय राज्य की फिर से निंदा नहीं करनी पड़ेगी।’