विनय कुमार पाठक
मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति माना गया है। माना भी मनुष्यों द्वारा ही गया है। गनीमत है कि पशु-पक्षी अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते या फिर यूं कहें कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति उनकी भाषा को समझ नहीं पाती। यदि समझ पाती तो शायद यह खुशफहमी न रहती।
तो इस सर्वश्रेष्ठ कृति में हफ्तों-महीनों-वर्षों से नहीं सदियों से अनेक विलक्षण क्षमताओं का विकास हो रहा है। नए-नए आविष्कार हो रहे हैं और उनका जमकर सदुपयोग हो रहा है। इस्राइल, गाजापट्टी, रूस, यूक्रेन में इसका प्रत्यक्ष प्रदर्शन हो रहा है। उन आविष्कारों में एक है मोबाइल फोन और सोने पे सुहागा यह है कि प्रायः हर मोबाइल फोन में वीडियो बनाने की सुविधा भी है, सिवा कुछ पुरातन युग के मोबाइल के जिन्हें फीचर फोन के नाम से जाना जा रहा है। सभी मनुष्यों में वीडियो बनाने की क्षमता और लगन का उत्तरोत्तर विकास होता जा रहा है।
इस क्षमता का विकास इतना हो गया है कि अब कहीं कोई दुर्घटना होती है तो वहां उपस्थित लोग सब काम छोड़कर अपने मोबाइल में उपलब्ध वीडियो बनाने के फीचर और अपनी वीडियो बनाने की क्षमता दोनों का तहे दिल से प्रयोग करने लगते हैं। घायलों का कराहना, उनकी सहायता के लिए चीख-पुकार, उनके चेहरे पर फैली विवशता और घबराहट, उनके सिर से बह रहा खून आदि की किसी को फिक्र नहीं होती। दृश्य को फिल्माने के स्थान पर कोई अपना समय एंबुलेंस बुलाने में गंवाए यह तो मोबाइल के स्वामी की वीडियो बनाने की क्षमता दोनों का अपमान होगा। साथ ही ईश्वर द्वारा रचित सर्वश्रेष्ठ कृति की सर्वश्रेष्ठता पर भी प्रश्न-चिह्न खड़ा करेगा।
अतः वीडियो बनाओ बलमा सब भूलकर वीडियो बनाओ बलमा,
फिर बिना देर किए इसे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालना।
आने वाले समय में इस कला का इतना विकास हो जाएगा कि घर में कोई बीमार पड़ेगा तो सबसे पहले वीडियो बनेगा, कोई गिर पड़ेगा तो सबसे पहले वीडियो बनेगा। किसी को हृदयाघात होगा तो सबसे पहले वीडियो बनेगा। किसी की मृत्यु होगी तो सबसे पहले वीडियो बनेगा। इसके बाद यदि समय बचा, यदि माहौल अनुकूल हुआ तो फिर चिकित्सा की व्यवस्था की जाएगी। आखिर हजारों रुपये खर्च होते हैं मोबाइल खरीदने में। तो क्यों न उसके इस फीचर का शतप्रतिशत प्रयोग हो?