यशपाल कपूर
सोलन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रदेश में सेब की पट्टी साल दर साल ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर खिसक रही है। प्रदेश के शीत मरूस्थल कहे जाने वाले ताबो में उच्च गुणवत्ता का सेब पैदा हो रहा है। ऐसे में कम ऊंचाई वाली किस्मों से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब के बगीचे दोबारा से महकने लगे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते सोलन में सेब की पैदावार न के बराबर रह गई थी। वर्तमान में सोलन जिला में करीब 70 हैक्टेयर भूमि पर ही सेब उगाया जा रहा है। यहां सेब उत्पादन बागबानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा था, ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र सोलन ने कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए सेब की नई प्रजातियों की सिफारिश की है। इससे उम्मीद जगी है कि सोलन जिला में अब दोबारा से सेब का उत्पादन होगा। डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी व कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट में लगाई गई किस्मों में इस बार सूखे के बावजूद अच्छी पैदावार मिली। इससे अब कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब की बागबानी हो सकेगी।
सेब से है हिमाचल की पहचान
हिमाचल को सेब राज्य भी कहते हैं। हिमाचल के बागवानों ने उत्तम फल गुणवत्ता में एक विशेष पहचान बनाई है। अभी तक अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही सेब उत्पादन हो रहा था, लेकिन सेब में लो चीलिंग क्षेत्रों में उपजाने योग्य और लगातार फल देने वाली किस्मों के आने से मध्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी नई आशा का संचार हुआ है। इससे पूर्व किसानों ने रॉयल व रैड डिलिशियस किस्में लगा रखी थी, जिनमें एक ओर 8 से 10 साल में फसल आती थी और रंग भी बहुत कम आता था। इसके विपरीत नई किस्में 3-4 वर्षों में फल दे देती हैं और रंग भी भरपूर आता है।
कंडाघाट, कसौली व चायल में उगाया जा सकता है सेब
वर्ष 2011 से इन किस्मों में फल आने शुरू हो गए। वैज्ञानिकों के शोध व आकलन से तीन किस्मों अर्ली रैड वन, स्कारलैट स्पर व गेल गाला को सोलन के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मुफीद पाया गया। सोलन के कंडाघाट, चायल, मही क्षेत्र, बाशा, जुब्बड़हट्टी व कसौली आदि क्षेत्रों को इन किस्मों को उगाने के लिए उपयुक्त किया गया। अभी तक कंडाघाट के कई किसानों के खेतों में इन किस्मों को प्रयोगात्मक रूप में लगवाया जा चुका है, जिसके उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं। सोलन में वर्ष 1914-15 में रजवाड़ा शाही के समय सबसे पहले सेब लगाए गए थे। इसके बाद वर्ष 1972-73 में सरकारी प्रयासों से लोगों को सेब के पौधों का लगाने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने सेब उत्पादन भी शुरू किया, लेकिन विश्वभर में मौसम में बदलाव से हिमाचल प्रदेश भी अछूता नहीं रहा।
केवीके में वर्ष 2009 में लगाई थीं विदेशी किस्में
वर्ष 2009 में कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट में उद्यान विभाग के माध्यम से विदेशों से आयातित किस्में लगाई गई थीं। इसमें अर्ली रैड वन, स्कारलैट स्पर, ऑरिगन स्पर-2, गेल गाला, गिबसन गोल्डन व ग्रैनी स्मिथ किस्मों को यहां लगाया गया। इन किस्मों को यहां 1300 मीटर की ऊंचाई में सफलतापूर्वक उगाए जाने से सोलन में सेब उगाने की संभावनाएं बढ़ी हैं। इन किस्मों में फसल भी जल्दी आती है और उनमें हर वर्ष फल लगने की क्षमता है। अभी तक कंडाघाट के कई किसानों के खेतों में इन किस्मों को प्रयोगात्मक रूप में लगवाया जा चुका है, जिसके उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं। इनके अलावा सुपर चीफ, जेरोमाइन व रैड बिलौक्स किस्मों में भी बहुत अच्छे फल लगे। यह तीनों किस्में मध्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं।
“केवीके कंडाघाट के प्रभारी डॉ. अमित विक्रम ने बताया कि लो चिलिंग किस्में अर्ली रैड वन, स्कारलैट स्पर व गेल गाला सोलन के लिए उपयुक्त हैं। इन किस्मों को लगाने से उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं। इनमें जहां अच्छी फसल लगी है वहां नैचुरल रंग भी भरपूर आ रहा है। इन नई किस्मों के आने से हिमाचल के मध्यम ऊंचाई वाले व कम ठंडे क्षेत्रों जैसे सोलन, शिमला, सिरमौर, मंडी, कुल्लू आदि जिलों में भी सेब की बागवानी सफलतापूर्वक की जा सकेगी। कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट इन किस्मों के पौधे इच्छुक किसानों को उपलब्ध करवा रहा है।”