हरेंद्र रापड़िया/हप्र
सोनीपत, 6 सितंबर
सोनीपत की रोहट सीट पर 1991 में कांग्रेस के हुक्म सिंह दहिया तथा जनता पार्टी के मास्टर महेंद्र सिंह दहिया के बीच हुए मुकाबले को याद कर आज भी लोगों की दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं। उतार-चढ़ाव से भरे मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी हुक्म सिंह दहिया मात्र 38 मतों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे। संयुक्त पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा में 1967 में हुए पहले चुनाव के दौरान रोहट आरक्षित सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ब्रह्म सिंह ने कांग्रेस के कंवर सिंह को 1781 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। 1968 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने कंवर सिंह का टिकट काटकर फूलचंद को दे दिया। इससे क्षुब्ध होकर कंवर सिंह ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोंक दी और 1622 मतों से जीत हासिल की। 1972 के चुनाव में कंवर सिंह इंदिरा कांग्रेस तथा फूलचंद ओल्ड कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर आमने-सामने थे। इस बार फूलचंद ने अपने पुराने प्रतिद्वंदी को 523 मतों से हराकर पिछली हार का हिसाब चुकता कर लिया। वर्ष 1977 में इस सीट को सामान्य घोषित कर दिया। जनता पार्टी की लहर के चलते ओमप्रकाश राणा ने कांग्रेस के नवल सिंह को हरा दिया। 1982 में लोकदल ने भीम सिंह दहिया तथा कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए शांति राठी को मैदान में उतार दिया जिसमें दहिया ने शानदार जीत हासिल की। 1987 में लोकदल के महेंद्र दहिया ने जीत दर्ज की।
वर्ष 1991 में लोकदल का जनता पार्टी में विलय हो गया। जपा ने महेंद्र दहिया तथा कांग्रेस ने हुक्म दहिया को उतारा। दोनों में कांटे का मुकाबला हुआ। एक राउंड में महेंद्र आगे तो अगले में हुक्म सिंह। हालत यह थी कि मतगणना में बैठे दोनों प्रत्याशियों के चुनावी एजेंटों की दिल की धड़कनें तेज हो रही थी और वे बार-बार अपना पसीना पोंछ रहे थे। आखिरकार हुक्म सिंह को 38 मतों से विजयी घोषित कर दिया गया। उन्हें 19,834 तथा महेंद्र सिंह को 19,796 मत मिले। इस मुकाबले को लोग आज तक याद करते हैं।
वर्ष 1996 में हविपा की कृष्णा गहलावत ने समता पार्टी के पदम दहिया को हराया। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी रामपाल जमानत तक नहीं बचा पाए। वर्ष 2000 में इनेलो ने पदम दहिया व निर्दलीय सुखबीर सिंह के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। इसमें निर्दलीय प्रत्याशी 30 हजार से अधिक मत लेकर चुनाव हार गए। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी संजय पहलवान की जमानत जब्त हो गई। यह लगातार दूसरा मौका था जब कांग्रेस प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाया।
वर्ष 2005 में एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुखबीर फरमाणा ने कांग्रेस की लहर होने के बावजूद 43,246 मत हासिल कर इनेलो के पदम दहिया को 23,140 मतों के अंतर से हराया। मगर 2009 में नये परिसीमन में सीट का नाम बदल कर खरखौदा कर दिया गया। साथ ही इसे आरक्षित भी कर दिया।
हैट्रिक लगा चुके हैं जयवीर वाल्मीकि
वर्ष 2009 में कांग्रेस के जयवीर वाल्मीकि ने यहां से जीत दर्ज की। 2014 में जयवीर वाल्मीकि ने फिर कांग्रेस की झेाली यह सीट डाली। इस जीत के साथ ही यह मिथक भी टूट गया कि इस सीट पर दूसरी बार कोई नहीं जीत सकता। जयवीर वाल्मीकि ने 2019 में जीत की हैट्रिक बना डाली। इस बार भी कांग्रेस उन्हें चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है।