मनीमाजरा (चंडीगढ़), 10 सितंबर (हप्र)
सच कहें तो क्षमा मांगना और क्षमा करना हर किसी के बस की बात नहीं है। हम क्षमा मांग कर और क्षमा करके अपने व्यक्तित्व को ऊंचा ही उठाते हैं। परस्पर क्षमा याचना से हमारा मान गलित होता है। पर्युषण महापर्व का समापन मैत्री दिवस के रूप में आयोजित होता है, जिसे ‘क्षमापना दिवस’ भी कहा जाता है।
इस तरह से पर्युषण महापर्व एवं क्षमापना दिवस एक-दूसरे को निकट लाने का पर्व है। यह एक-दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है। ये शब्द मनीषी संत मुनि श्री विनयकुमार आलोक ने पर्युषण महापर्व के समापन पर संबोधित करते हुए अणुव्रत भवन सेक्टर -24 के तुलसी सभागार में कहे। कार्यक्रम मे वेद प्रकाश जैन अध्यक्ष तेरापंथी सभा, सुधीर जैन मंत्री तेरापंथी सभा, मनोज जैन अध्यक्ष अणुव्रत समिति , विजय जैन, विजय गोयल, राजेंद्र कुमार जैन चेयरमैन अणुव्रत समिति, सलील बंसल, विनोद सेठिया, रवि चोपड़ा, सुनील नाहर, विजय शर्मा, झूमर बोथरा, अभय बोथरा, शांता चोपड़ा, सरिता बोथरा, मंजू जैन, प्रेम जैन, नाहर जैन, , मनोज जैन, मदरेता जैन आदि ने साल भर मे हुई गलतियों के लिए क्षमायाचना की। मनोज जैन ने कार्यक्रम का संचालन किया।
मनीषी संत ने कहा प्रथम दृष्टि में हमें यह बात अजीब लगती है, जब हमने गलती ही नहीं की तो हम सामने वाले से क्षमा क्यों मांगें। मनीषी संत ने फरमाया कि जैन धर्म का मर्म अहिंसा है।