चंडीगढ़, 12 सितंबर (ट्रिन्यू)
राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने हरियाणा मंत्रिमंडल की सिफारिश को मंजूरी देते हुए हरियाणा की मौजूदा और 14वीं विधानसभा को भंग कर दिया है। बुधवार को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में विधानसभा भंग करने की सिफारिश की गई थी। राज्यपाल ने विधानसभा को भंग करते हुए नई सरकार और 15वीं विधानसभा का गठन होने तक नायब सिंह सैनी को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य करते रहने को कहा है।
नायब सरकार के मंत्री भी नई सरकार के गठन तक काम करते रहेंगे। विधानसभा भंग होने के साथ ही अब विधायकों का कार्यकाल समाप्त हो गया है। नई सरकार के गठन तक वे कोई नीतिगत फैसले नहीं ले सकेंगे। किसी भी तरह की महामारी, प्राकृतिक आपदा या कानून व्यवस्था से जुड़ा कोई मामला आता है तो कार्यवाहक सरकार फैसला लेने में सक्षम होगी। माना जा रहा है कि दशहरा यानी 12 अक्तूबर से पहले नई सरकार का गठन हो जाएगा। नायब सरकार को विधानसभा भंग करने का फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर सरकार के सामने संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। हरियाणा में इस तरह से विधानसभा को भंग करने का यह पहला मामला है।
संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के तहत किसी भी राज्य की विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का समय नहीं होना चाहिए।
हरियाणा के लिहाज से देखें तो यहां 13 मार्च को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें सीएम नायब सैनी ने बहुमत साबित किया। इसके बाद छह महीने के भीतर यानी 12 सितंबर तक हर हाल में दूसरा सेशन बुलाना अनिवार्य था।
इससे पहले तीन बार भंग हो चुकी एसेंबली
प्रदेश में यह चौथा मौका है जब विधानसभा को भंग किया गया है। 1972 में बंसीलाल सरकार ने एक साल पहले विधानसभा भंग करके चुनाव करवाए थे। इसके बाद जुलाई-1999 में चौटाला सरकार ने अपने पक्ष में माहौल को भांपते हुए विस भंग करके समय पूर्व चुनाव करवाए। इससे पहले बंसीलाल की सरकार भाजपा द्वारा समर्थन वापसी से अल्पमत में आ गई थी। कांग्रेस ने समर्थन दिया लेकिन वापस भी ले लिया। ऐसे में बंसीलाल की सरकार गिर गई। इसी तरह से 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दूसरी बार यूपीए सरकार बनने के बाद हरियाणा विधानसभा को छह महीने पहले भंग करके चुनाव करवाए। इस बार विधानसभा समय पूर्व चुनावों के लिए नहीं बल्कि संवैधानिक मजबूरी के चलते भंग हुई है।
अल्पमत की वजह से नहीं बुलाया सत्र
विधानसभा का सत्र नहीं बुलाने के पीछे एक वजह यह भी रही कि लोकसभा चुनावों के दौरान ही नायब सरकार अल्पमत में आ गई थी। 12 मार्च को नई सरकार का गठन करते वक्त भाजपा ने जजपा के साथ गठबंधन भी तोड़ दिया था। निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बहुमत साबित किया। तीन निर्दलीय विधायकों – सोमबीर सिंह सांगवान, धर्मपाल गोंदर और रणधीर सिंह गोलन ने सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस को समर्थन का ऐलान कर दिया। ऐसे में नायब सरकार अल्पमत में आ गई। हालांकि अब कई विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार बहुमत में है। लेकिन इससे पहले सरकार इसी वजह से सत्र बुलाने से बचती रही ताकि विधानसभा में किसी तरह का हंगामा ना हो।