जयनारायण प्रसाद
बांग्ला फिल्मों की ‘महानायिका’ कही जाने वाली सुचित्रा सेन हिंदी सिनेमा की भी बड़ी अभिनेत्री थीं। सुचित्रा सेन ने बांग्ला सिनेमा में करीब 53 फिल्में कीं, जबकि उनकी सात (7) फिल्में हिंदी जुबान में हैं। विमल रॉय निर्देशित ‘देवदास’ (1955), हृषिकेश मुखर्जी की ‘मुसाफिर’ (1957), राज खोसला की ‘बंबई का बाबू’ (1960), असित सेन निर्देशित ‘ममता’ (1966) और गुलज़ार निर्देशित ‘आंधी’ (1975) – इन सभी हिंदी फिल्मों में अभिनेत्री सुचित्रा सेन का बहुआयामी किरदार है। अभिनेत्री सुचित्रा सेन के बचपन का नाम रमा दासगुप्ता था। बांग्ला फिल्मों से जुड़ी तो सुचित्रा हो गई। एक उद्योगपति आदिनाथ सेन के बेटे दिवानाथ सेन से शादी हुई, तो सुचित्रा सेन बन गई। सुचित्रा की पैदाइश बांग्लादेश के पाबना जिले (सिराजगंज) में 1931 में हुई थी। वर्ष 1947 में सुचित्रा का परिवार कलकत्ता आ गया। उनकी शुरुआती शिक्षा पटना में हुई, फिर कलकत्ता आ गई। सुचित्रा 21 वर्ष की हुई, तो उनका विवाह हो गया। भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो कहलाने वाली सुचित्रा सेन की फिल्म ‘ममता’ का ‘रहें ना रहें हम’ और ‘आंधी’ के अमूमन सभी गाने आज भी लोकप्रिय हैं।
बांग्ला फिल्म से शुरुआत
खूबसूरत व स्मार्ट सुचित्रा सेन वर्ष 1952 में जब महज़ पंद्रह साल की थीं, तो बांग्ला सिनेमा में उन्हें अभिनय का मौका मिला। उस बांग्ला फिल्म का नाम था ‘शेष कोथाए’ (मतलब अंत कहां) जो रिलीज ही नहीं हुई। दूसरी बांग्ला फिल्म सुचित्रा को मिलीं 1953 में, नाम था ‘सात नंबर कैदी’। सुकुमार दासगुप्ता इस फिल्म के निर्देशक थे और सह-अभिनेता थे समर रॉय। सुचित्रा सेन की यह फिल्म चलीं तो नहीं, लेकिन तीसरी फिल्म के लिए उन्हें इंतजार नहीं करना पड़ा। निर्देशक निर्मल दे ने सुचित्रा सेन को बुलाया और अपनी नई बांग्ला फिल्म ‘साढ़े चुआत्तर’ के लिए अनुबंध पर साइन कराया। उत्तम कुमार इस बांग्ला फिल्म के नायक थे। इस मूवी में उस दौर के चर्चित अभिनेता तुलसी चक्रवर्ती भी थे। सुचित्रा की यह फिल्म चल निकलीं और देखते-देखते उत्तम कुमार के साथ जोड़ी बन गई। यही उत्तम कुमार बाद में बांग्ला सिनेमा के ‘महानायक’ कहलाए और सुचित्रा सेन ‘महानायिका’। साठ बांग्ला फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ करीब तीस फिल्मों की अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन।
हिंदी फिल्मों से भी जुड़ीं
वर्ष 1963 में मास्को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में बांग्ला फिल्म ‘सात पाके बांधा’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार पा चुकीं अभिनेत्री सुचित्रा सेन को हिंदी फिल्मों में ब्रेक निर्देशक विमल रॉय ने वर्ष 1955 में दिया। फिल्म थीं ‘देवदास’, जिसमें मुख्य अभिनेता थे दिलीप कुमार और अभिनेत्री थीं वैजयंती माला। पारो की भूमिका के लिए सुचित्रा सेन को चुना गया और चंद्रमुखी थीं वैजयंती माला। ‘देवदास’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘देवदास’ सम्मानित हुई। देखते-देखते सुचित्रा सेन हिट हो गई। हिंदी फिल्में उन्हें मिलने लगीं।
‘मुसाफिर’
निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की हिंदी फिल्म ‘मुसाफिर’ के लिए सुचित्रा सेन को बुलावा आया। यह हृषिकेश मुखर्जी की पहली फिल्म थीं जिसकी कहानी और पटकथा ऋत्विक घटक ने लिखी थी। सुचित्रा सेन और अभिनेता शेखर की यह फिल्म 1957 में रिलीज हुई। इस फिल्म के तीन भाग थे। पहले हिस्से में सुचित्रा सेन-शेखर थे। बाक्स आफिस पर ‘मुसाफिर’ ने कमाल किया और सुचित्रा के कैरियर ने गति पकड़ी।
‘चंपाकली’, ‘बंबई का बाबू’ और ‘सरहद’
‘मुसाफिर’ के चल निकलने के बाद सुचित्रा सेन को नंदलाल-जसवंतलाल निर्देशित फिल्म ‘चंपाकली’ (1957), राज खोसला निर्देशित ‘बंबई का बाबू’ (1960) और शंकर मुखर्जी निर्देशित ‘सरहद’ (1960) मिलीं। इन फिल्मों में दो (फिल्में) अभिनेता देवानंद के साथ थीं ‘बंबई का बाबू’ और ‘सरहद’।
सिनेमा से संन्यास
वर्ष 1975 में फिल्म ‘आंधी’ के बाद अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने सिनेमा में अभिनय छोड़ दिया। एकांत में रहने लगीं। वजह थी जुलाई, 1980 में बांग्ला सिनेमा के ‘महानायक’ उत्तम कुमार भी चल बसे। अब सिर्फ ‘महानायिका’ सुचित्रा सेन रह गई थीं। वे और अकेली हो गयीं। कलकत्ता में 82 साल की उम्र में 17 जनवरी, 2014 को सुचित्रा सेन भी इस दुनिया को अलविदा कह गयीं। चित्र लेखक