तेजेंद्र पाल सिंह
‘दिवास्वप्न’ साहित्यकार हरनाम शर्मा का नवप्रकाशित कहानी-संग्रह है। इस संग्रह की बारह कहानियों में समाज के मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के दुःख-दर्द को बखूबी महसूस किया जा सकता है। अभावग्रस्त जीवन, घरेलू हिंसा, बेगानापन, अनमेल विवाह, बेरोजगारी, रक्तदान, और एकाकीपन जैसे विषय इन कहानियों में उठाए गए हैं।
कहानी ‘पति-पत्नी’ ठेठ हरियाणवी परिवेश की कहानी है, जिसमें एक समर्पित विवाहिता को घरेलू हिंसा सहन करते हुए दर्शाया गया है। यह कहानी भावुक करती है और साथ ही हरियाणवी संस्कृति को जीवंत कर देती है।
कहानी ‘उपलब्धि’ वृद्धावस्था में पहुंचे एक साहित्यकार के जीवन और साहित्य की वर्तमान दशा पर प्रकाश डालती है। शीर्षक-कहानी ‘दिवास्वप्न’ में एक सेवा-निवृत्त अध्यापक की प्रगतिशील सोच क्रियान्वित नहीं हो पाती और वह सिर्फ दिवास्वप्न बनकर रह जाती है।
‘भजन-भोजन’ कहानी में एक कर्मचारी को भोजन और भजन के बीच झूलते हुए दिखाया गया है। कहानी ‘अवरुद्ध’ एक दब्बू विद्यार्थी की कहानी है, जिसे दूसरे दबंग विद्यार्थी द्वारा सताया जाता है। कहानी ‘सहारा’ में दादा और पोती एक-दूसरे के एकाकीपन का सहारा बनते हैं। कहानी ‘छिद्र’ में पिता के बनियान में हुए छिद्र के माध्यम से दो पीढ़ियों के बीच सोच के अंतर को दर्शाया गया है।
कहानियों का कथानक वर्तमान काल से लेकर लगभग पचास वर्ष पूर्व के समय तक का है। इन कहानियों में रोचकता और उत्सुकता बनी रहती है, और पाठक कहानियों के साथ बहता चला जाता है। कहानी-संग्रह ‘दिवास्वप्न’ की कहानियां पाठकों को बांधे रखने की क्षमता रखती हैं।
पुस्तक : दिवास्वप्न कहानीकार : हरनाम शर्मा प्रकाशक : एसपी कौशिक इंटरप्राइजेज, दिल्ली पृष्ठ : 109 मूल्य : रु. 350.