दिनेश भारद्वाज/ ट्रिन्यू
रेवाड़ी, 16 सितंबर
अहीरवाल की राजधानी यानी रेवाड़ी की मिट्टी की अपनी अलग ही पहचान है। बात आजादी की लड़ाई की हो या अब सीमाओं की रक्षा की, शहादत में यहां का कोई जवाब नहीं। सैनिक बाहुल्य रेवाड़ी को अहीरवाल का ‘हार्ट’ भी कहा जाता है। सेना में यहां के नौजवानों की बहुतायत और युवाओं में फौज के प्रति क्रेज के चलते केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना भी इस बेल्ट में बड़ा मुद्दा है।
महाभारत काल से जुड़े रेवाड़ी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ‘दाऊ’ का ससुराल माना जाता है। यहां की चुनावी महाभारत में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है। भले ही, कांग्रेस की तरफ से चिरंजीव राव और भाजपा से लक्ष्मण यादव चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन असल में यह ‘कप्तान’ और ‘राजा’ के बीच चौधराहट की जंग है। अहीरवाल में मजबूत पैठ रखने वाले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस के ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय चेयरमैन कैप्टन अजय सिंह यादव की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। कैप्टन अजय सिंह यादव का रेवाड़ी में पुराना रसूख और प्रभाव है। रेवाड़ी हलका उनकी परंपरागत सीट भी माना जाता है।
2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रणधीर सिंह कापड़ीवास के सामने चुनाव हारने के बाद कैप्टन अजय यादव ने हलके की सियासत अपने बेटे चिरंजीव राव के हवाले कर दी। 2019 में पहली बार चुनाव लड़े चिरंजीव राव ने भाजपा के सुनील मुसेपुर को शिकस्त दी और विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद चिरंजीव राव अहीरवाल की ‘चौधर’ का नारा देते हुए साफ कह चुके हैं कि इस बार कांग्रेस सरकार में वे हैवीवेट उपमुख्यमंत्री होंगे।
वहीं, लगभग दस साल पहले तक कांग्रेस और उसके बाद से भाजपा में सक्रिय राव इंद्रजीत सिंह ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की लड़ाई शुरू कर दी है।
हालांकि, भाजपा द्वारा यह चुनाव स्पष्ट तौर पर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। 2019 में कोसली से विधायक बने लक्ष्मण सिंह यादव को इस बार राव इंद्रजीत सिंह की सिफारिश पर भाजपा ने रेवाड़ी से चुनावी मैदान में उतारा है। यह चुनाव लक्ष्मण यादव से अधिक राव इंद्रजीत सिंह की प्रतिष्ठा का सवाल है।
अजय यादव रहे छह बार ‘कप्तान’ : कैप्टन अजय सिंह यादव रेवाड़ी के अकेले ऐसे नेता हैं, जो लगातार छह बार हलके के ‘कप्तान’ रहे। साल 1987 में लोकदल के टिकट पर रेवाड़ी से विधायक बने रघु यादव ने देवीलाल से ठनने के बाद विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इसके चलते 1989 में हुए उपचुनाव में अजय सिंह यादव ने चुनावी राजनीति में एंट्री की और पहली बार विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1991 और फिर 1996 में जीत हासिल कर हैट्रिक लगाई। साल 2000 और फिर 2005 का चुनाव जीतने के बाद कैप्टन अजय यादव हुड्डा सरकार में हैवीवेट मंत्री बने। 2009 में उन्होंने लगातार छठी बार चुनाव जीता और हुड्डा सरकार में फिर से कैबिनेट मंत्री बने। साल 2014 में भाजपा के रणधीर सिंह कापड़ीवास ने उनके विजय रथ को रोका। कैप्टन अजय यादव के पिता अभय यादव 1972 में रेवाड़ी से विधायक रहे। आर्मी की सेवाओं से राजनीति में आए कैप्टन अजय यादव ने पिता की राजनीति को आगे बढ़ाया। अब तीसरी पीढ़ी के रूप में चिरंजीव राव राजनीति में एक्टिव हैं।
पद्मश्री बाईजी भी रहीं विधायक : पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह की बहन और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बुआ पद्मश्री सुमित्रा देवी ‘बाईजी’ भी रेवाड़ी से विधायक रही हैं। सुमित्रा देवी ने पहला चुनाव 1967 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद जब राव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर ‘विशाल हरियाणा पार्टी’ का गठन किया तो सुमित्रा देवी ने दूसरा चुनाव इस नये दल की तरफ से लड़कर जीता। उन्होंने 15 हजार 10 वोट हासिल करके कांग्रेस के बाबू दयाल को 3 हजार 283 मतों से शिकस्त दी थी।
बलराम की पत्नी के नाम पर बसा नगर
महाभारत काल में रेवाड़ी को ‘रीवा वाड़ी’ नाम से जाना जाता था। किंवदंतियों के अनुसार, महाभारत काल में रेवट नामक राजा की बेटी रेवती ‘रीवा’ के नाम पर ही शहर का नाम रीवा वाड़ी रखा गया था। माना जाता है कि रेवती का विवाह श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ‘दाऊ’ से हुआ और राजा रेवट ने रीवा वाड़ी को कन्यादान में दे दिया। मान्यता यह भी है कि बलराम ने इसे राजधानी बनाया और उनके बाद श्रीकृष्ण के प्रपौत्र महाराज बज्रभान ने भी यहां लंबे समय तक शासन किया।
रेवाड़ी में बनी थी देश की पहली गौशाला
वर्तमान में यह क्षेत्र बेशक अहीर बाहुल्य है, लेकिन किसी जमाने में मौर्या, गुप्ता और गुर्जर समुदाय के लोग यहां बड़ी संख्या में थे। दान-दक्षिणा और पुण्य कार्यों में यहां के लोग सदैव आगे रहे हैं। देश की पहली गौशाला 1878 में रेवाड़ी में ही बनाई गई थी। इस इलाके के कलाकारों, कवियों, साहित्यकारों, शूरवीरों व धार्मिक स्थलों की वजह से भी रेवाड़ी अलग पहचान रखता है।
कभी यहां बनती थी पीतल की तोपें
रेवाड़ी को पीतल नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां का ठठेरा चौक आज भी इस बात का प्रमाण है। बेशक, वक्त के साथ अब पीतल की चमक कम हो चुकी है और राजनीति पूरी तरह से हावी है। दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट हेमचंद विक्रमादित्य ‘हेमू’ के समय रेवाड़ी में पीतल की तोपें बनाने का काम शुरू हुआ। जंग में इन तोपों को जीत की गारंटी माना जाता था। बाद में यहां पीतल के बर्तनों का कारोबार भी फला-फूला, लेकिन अब इस काम में कम ही ठठेरे हैं। प्रदेश के गठन से लेकर अब तक कई सरकारें आईं। थोड़े समय के लिए ही सही, लेकिन अहीरवाल में चौधर भी रही। हर सरकार में अहीरवाल को प्रतिनिधित्व भी मिला, लेकिन पीतल उद्योग की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
कब, कौन रहा विधायक
वर्ष विधायक
1967 सुमित्रा देवी
1968 सुमित्रा देवी
1972 अभय सिंह
1977 राम सिंह
1982 राम सिंह
1987 रघु यादव
1989 अजय सिंह
1991 अजय यादव
1996 अजय यादव
2000 अजय यादव
2005 अजय यादव
2009 अजय यादव
2014 रणधीर कापड़ीवास
2019 चिरंजीव राव