नयी दिल्ली : ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए कई विकल्पों पर लगातार काम चल रहा है। हालांकि जरूरत के मुताबिक अब भी पहुंच बहुत दूर है। इस संबंध में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने एक अध्ययन किया है। अध्ययन के संबंध में जारी विज्ञप्ति के अनुसार भारत की वर्तमान में अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 150 गीगावॉट है और 1,500 गीगावॉट तक आने वाली बाधाओं का प्रबंधन अपेक्षाकृत रूप से आसान है। लेकिन सीईईडब्ल्यू का अध्ययन, ‘अनलॉकिंग इंडियाज आरई एंड ग्रीन हाइड्रोजन पोटेंशियल: ऐन असेसमेंट ऑफ लैंड्स, वॉटर एंड क्लाइमेट नेक्सेस’, रेखांकित करता है कि 1,500 गीगावॉट से आगे बढ़ने पर अक्षय ऊर्जा के सामने प्रमुख चुनौतियां आ सकती हैं। भारत के जलवायु लक्ष्यों को साकार करने के लिए सौर, पवन और ग्रीन हाइड्रोजन सहित अक्षय ऊर्जा अत्यधिक जरूरी है। लेकिन इन तकनीकों को आगे बढ़ाने के लिए रणनीति आधारित भू-उपयोग, बेहतर जल प्रबंधन और ग्रिड के लचीले ढांचे की जरूरत होगी।
अध्ययन के संबंध में जारी बयान के मुताबिक, भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता को साकार करने में जनसंख्या घनत्व प्रमुख बाधा है, सिर्फ 29 प्रतिशत संभावित तटवर्ती पवन ऊर्जा और 27 प्रतिशत संभावित सोलर क्षमता 250 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में स्थित है। भूमि संघर्ष भी परियोजना लगाने में बाधा बनते हैं। सिर्फ लगभग 35 प्रतिशत तटवर्ती संभावित पवन ऊर्जा क्षमता और 41 प्रतिशत संभावित सौर क्षमता उन क्षेत्रों में है, जहां पर कोई ऐतिहासिक भूमि संघर्ष मौजूद नहीं हैं।
सीईईडब्ल्यू अध्ययन ने बिना बाधा वाली अक्षय ऊर्जा की उच्च क्षमता वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों और लद्दाख जैसे क्षेत्रों की पहचान की है। राजस्थान (6,464 गीगावॉट), मध्य प्रदेश (2,978 गीगावॉट), महाराष्ट्र (2,409 गीगावॉट) और लद्दाख (625 गीगावॉट) में कम लागत वाली अति-महत्वपूर्ण सौर ऊर्जा क्षमता मौजूद है, जबकि कर्नाटक (293 गीगावॉट), गुजरात (212 गीगावॉट) और महाराष्ट्र (184 गीगावॉट) पर्याप्त पवन ऊर्जा क्षमता उपलब्ध कराते हैं।
बयान में सीईईडब्ल्यू की सीईओ डॉ. अरुणाभा घोष ने कहा, ‘भारत अपनी ऊर्जा परिवर्तन यात्रा के एक महत्वपूर्ण मुहाने पर खड़ा है। इसने लगभग असंभव से लक्ष्य तय किए हैं: लाखों लोगों को ऊर्जा उपलब्ध करना, विश्व की सबसे बड़ी ऊर्जा प्रणालियों में से एक को स्वच्छ बनाना और एक हरित औद्योगिक शक्ति बनना। सीईईडब्ल्यू अध्ययन ने पहली बार देश की भूमि का बारीकी से विश्लेषण किया है, ताकि भूमि, जनसंख्या और जटिल, गैर-रेखीय (नॉन-लीनियर) जलवायु जोखिमों से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करते हुए यह पता लगाया जा सके कि अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट को कहां पर लगा सकते हैं।’ बयान में हेमंत मल्या, फेलो, सीईडब्ल्यू, ने कहा, ‘भारत में अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन को विस्तार देने के लिए भूमि और जल महत्वपूर्ण संसाधन हैं। रेगिस्तानीकरण रोकने और नए प्रयोगों के माध्यम से भूमि उपलब्धता की कमी को दूर करने के लिए बागवानी में एग्रो-फोटोवोल्टिक्स और घने भारतीय शहरों में रूफटॉप सोलर जैसे कदम उठाने जरूरी होंगे।’ इस अध्ययन में कई चुनौतियों को तो रेखांकित किया ही गया है, अनेक सुझाव भी दिए गए हैं।