भारत की आकांक्षाओं का हो सम्मान
ऐसे वक्त में जब प्रधानमंत्री की रूस व यूक्रेन यात्रा के बाद पश्चिमी जगत की प्रतिक्रिया को लेकर तरह-तरह के विमर्श पेश किए जा रहे थे, उस लिहाज से उनकी अमेरिका यात्रा के हासिल समझना कठिन नहीं है। अब चाहे क्वाड में भारत की सार्थक उपस्थिति हो या अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में पहुंचे राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ मोदी की केमिस्ट्री हो, उसकी देश-विदेश के मीडिया में चर्चा हुई। उन्हें सुनने उमड़ा विशाल भारतवंशी समुदाय उनकी लोकप्रियता के ग्राफ को दर्शाता है। अब भले ही मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर राजग व भाजपा के नेता कसीदे पढ़ रहे हों, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रधानमंत्री के साढ़े चार मिनट के भाषण की चर्चा जरूर हुई है। उन्होंने प्रतीकों व प्रतिमानों के जरिये संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत, ग्लोबल साउथ की आवाज और चीन की समुद्री क्षेत्रों में दादागीरी व पाक के आंतकवाद पोषण को बिना नाम लिये उजागर किया। एक मायने में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को उसके मुख्यालय में आईना दिखाया कि विश्व में उभरती शक्तियों को संयुक्त राष्ट्र में न्यायोचित स्थान नहीं मिला। उन्होंने भारत की विशाल जनसंख्या, तेजी से बढ़ती आर्थिक हैसियत तथा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की संयुक्त राष्ट्र में बड़ी भूमिका की जरूरत को बताया। संयुक्त राष्ट्र की ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण पहली नजर में सपाट नजर आता है, लेकिन इसके जरिये दुनिया के बड़े देशों के लिये साफ संदेश निहित था। उन्होंने भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश के लिये सुरक्षा परिषद के लिये दरवाजे बंद करने पर सवाल उठाए। उन्होंने भारत द्वारा सफलता से आयोजित जी-20 सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्यता दिये जाने का जिक्र करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र को भी नये विश्व की आकांक्षाओं का सम्मान करना चाहिए। उनका आग्रह था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की आवाज को सुना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम दुनिया की आबादी के छठवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारत की समृद्ध लोकतांत्रिक परंपराओं का जिक्र करते हुए अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि कैसे देश ने दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का बखूबी आयोजन किया। लेकिन दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की संयुक्त राष्ट्र में महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे विकास का चेहरा मानवीय होना चाहिए। मानव कल्याण के लिये खाद्य, स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने भारत में गरीबी से निकाले गए करोड़ों लोगों का उदाहरण देते हुए कहा कि यह समावेशी विकास से ही संभव हुआ। साथ ही कहा कि हम यह अनुभव ग्लोबल साउथ के देशों के साथ साझा करने को तत्पर हैं। दरअसल, ग्लोबल साउथ के मायने हैं कि विकास की दौड़ में पीछे रह गए वे अफ्रीका व लैटिन अमेरिकी देश, जिन्हें आर्थिक संबल की जरूरत है। जिनके लिये वर्ष 2023 में भारत ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ का आयोजन कर चुका है। भारत ने अपने अनुभवों का लाभ इन देशों के साथ बांटने में उत्सकुता दिखायी। प्रधानमंत्री ने फिर दोहराया कि विश्व शांति व विकास के लिये जरूरी है कि वैश्विक संस्थाओं के स्वरूप में सुधार किया जाए। दूसरी शब्दों में कहें कि तो प्रधानमंत्री ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिए जाने की वकालत की है। वहीं दूसरी ओर उन्होंने पाकिस्तान व चीन का नाम लिए बगैर साफ किया कि दुनिया की शांति व सुरक्षा के लिये आतंकवाद बड़ा खतरा है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर इसके खिलाफ कार्रवाई की वकालत की।