रविंदर शर्मा/निस, अमृतसर/बरनाला
Basmati paddy: किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के आह्वान पर अमृतसर में किसानों ने जिला प्रबंधकीय परिसर में डिप्टी कमिश्नर (DC) कार्यालय के सामने बासमती धान बिखेर कर विरोध प्रदर्शन किया। किसानों का कहना है कि इस वर्ष उन्हें बासमती फसल के लिए लगभग 1200 रुपये प्रति क्विंटल कम मूल्य पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह उनकी समस्याओं की अनदेखी कर रही है। किसानों ने आरोप लगाए कि प्राइवेट कंपनियां किसानों से सस्ते में चावल और बासमती खरीदकर महंगा बेच रही है।
इस दौरान किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के पंजाब नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि इस सीजन में बासमती की किस्म 1509 और 1692 बाजारों में लूट साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि इस बार किसानों की बासमती को प्राइवेट खरीदारों द्वारा आधी कीमत पर लिया जा रहा है।
किसानों ने कहा कि बासमती का रेट 2000 से 2400 तक है, जबकि पिछले साल 3500-4000 रुपए था, जिसके चलते हर किसान को एक क्विंटल में 25-30 हजार का सीधा नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि इस बार पंजाब सरकार ने किसानों से दावा किया था कि अगर बासमती का रेट 3200 रुपए से कम कर दिया जाए तो सरकार इस घाटे को पूरा करेगी लेकिन अब सरकार भी पीछे हटती नजर आ रही है।
सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल को निर्यात शुल्क से छूट दी
सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क खत्म कर दिया है। राजस्व विभाग ने शुक्रवार देर रात जारी अधिसूचना में उसना चावल, भूरा चावल (ब्राउन राइस) और धान पर भी निर्यात शुल्क घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है। चावल की इन किस्मों के साथ-साथ गैर-बासमती सफेद चावल पर निर्यात शुल्क अब तक 20 प्रतिशत था। अधिसूचना में कहा गया है कि नई दरें 27 सितंबर, 2024 से प्रभावी हो गई हैं।
निर्यातकों ने किया फैसले का स्वागत
सरकार के आदेश में विस्तार से बताया गया है कि यह फैसला क्यों लिया। बता दें कि सरकार ने जुलाई 2023 में घरेलू चावल की आपूर्ति को सुरक्षित करने और कीमतें स्थिर करने के लिए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब इस फैसले का निर्यातकों ने स्वागत किया है। निर्यातकों ने इसे कृषि उद्योग के लिए “गेम-चेंजर” बताया है।
राइस विला के सीईओ सूरज अग्रवाल ने कहा कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का भारत का साहसिक निर्णय कृषि क्षेत्र के लिए गेम-चेंजर है। इस कदम से निर्यातकों की आय में वृद्धि होने और नई खरीफ फसल के आने पर किसानों को अधिक आकर्षक रिटर्न मिलने की उम्मीद है।