केवल तिवारी
वही हुआ, जिसकी आशंका थी। पेजर विस्फोट के बाद लेबनान और इस्राइल के बीच ‘जंगी हालात’ बने और सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। दोनों ओर से एक-दूसरे पर हमले जारी हैं। मौत का यह खतरनाक खेल कहां जाकर रुकेगा, यह तो इसे शुरू करने वाले ही जानें, लेकिन इस प्रकरण ने सशंकित सबको कर दिया है। क्या हम अपने गैजेट के साथ सुरक्षित हैं या रफ्तार पकड़ती तकनीक के इस दौर में खतरों को साथ लेकर चल रहे हैं…
आसमान से कड़कती बिजली का खौफ नहीं,
ए खुदा डरते हैं जमीं पर तेरे आदमी से हम।
किसी शायर की ये दो पंक्तियां मौजू हैं वर्तमान के तकनीकी युग में। आदमी को आदमी से खौफ का मंजर लगातार भयावह होने लगा है। खौफ का एक ‘कारोबार’ है। खौफ ‘ऑनलाइन’ हो गया है। अदृश्य खौफ का मंजर जब हकीकत की जमीन पर दिखने लगता है तो सारी कायनात हिल कर रह जाती है। ऑनलाइन ठगी से उबरने के प्रयास अभी सिरे नहीं चढ़ पाए थे कि अब ऑनलाइन विस्फोट ने एक नए विवाद, नए डर को जन्म दे दिया है।
वैश्विक शांति की तमाम कोशिशों से इतर, ‘दुश्मन’ को खत्म करने के नये-नये तरीकों से सभी अमनप्रिय लोग स्तब्ध हैं। हाइड्रोजन बम, साइबर अटैक की चर्चाओं के बीच पिछले दिनों लेबनान में पेजर विस्फोट ने सबको चौंका दिया। उसके बाद लेबनान और इस्राइल के बीच छिड़ गयी ‘खूनी जंग’। पेजर और ‘वाकी-टॉकी’ विस्फोट के बाद एक बार फिर नित नयी ईजाद होती तकनीक, उस पर बढ़ती निर्भरता और उससे उपजते भयावह खतरों ने सबको सकते में डाल दिया है। इस विस्फोट ने एक सवाल को जन्म दिया है कि मोबाइल, लैपटॉप, टैब जैसे तमाम गैजेट इस्तेमाल करने वाला आमजन कितना सुरक्षित है। असल में इन गैजेट्स पर हमारी जितनी अधिक निर्भरता बढ़ रही है, उतने ही ज्यादा खतरे भी बढ़ रहे हैं। तकनीक पर निर्भरता से खतरे बढ़ने की तो बात सही है, लेकिन नया माजरा तो तकनीक के ‘बैक’ मारने जैसा है। जो पेजर दुनिया के लिए इतिहास बन चुका था, उसी पेजर के इस्तेमाल के लिए पहले मजबूर किया गया और फिर विस्फोट।
जानकार कहते हैं कि लेबनान में साजिशन पहले यह भ्रम फैलाया गया कि आपके सभी फोनों को ट्रैक कर लिया जाएगा। फिर उन्हें मजबूर किया गया कि वे पेजर खरीदें। खासतौर से आपात सर्विस में लगे लोग। जब फोन ट्रैक हो सकने की आशंका बलवती हुई तो ‘लड़ाकों’ ने भी पेजर रखने में ही ‘भलाई’ समझी। इसके बाद एक कंपनी को पेजर बनाने का ऑर्डर दिया गया। बताया जा रहा है कि कंपनी से पेजर ठीक बनकर आए। डिस्ट्रीब्यूटर के यहां से भी सही निकले, लेकिन बीच में ही उनमें तीन-तीन मिलीग्राम प्रति पेजर विस्फोटक भर दिया गया और एक खास तरह के मैसेज के साथ फिट कर दिया गया। इंतजार किया गया और मैसेज के एक्टिव होते ही हजारों पेजर में विस्फोट हो गया।
डर का कारोबार
क्या-क्या दिलों का खौफ छुपाना पड़ा हमें,
खुद डर गए तो सबको डराना पड़ा हमें।
दरअसल, ठगी करने से लेकर बदला लेने तक माजरा खौफ का है। खुद डरा हुआ कोई भी देश औरों को डराने के लिए नयी-नयी तकनीक ईजाद कर रहा है। कभी वेबसाइट हैक करने की कोशिश होती है तो कभी बैंकिंग प्रणाली पर साइबर अटैक। स्थिति अजीब है कि पहले कुछ न होते हुए कुछ हो जाने का डर दिखाया जाता है, फिर डरे हुए व्यक्ति से अगला कदम ऐसा उठवाया जाता है कि डर के धंधेबाजों की मौज। ऐसा ही पेजर विस्फोट के मामले में हुआ। डराया गया कि फोन इस्तेमाल मत करो, फोन की जगह आउटडेटेड पेजर को अपनाया और मौत गले पड़ गयी।
नया खतरा वर्चुअल फोन कॉल
एक्सपर्ट कहते हैं कि एक वर्चुअल फोन कॉल का भी नया खेल ठगी की दुनिया में शुरू हो गया है। यह खेल अजीबोगरीब है। एक आभासी नंबर क्रिएट किया जाता है फिर उससे ‘शिकार’ को फोन किया जाता है। फोन रिसीव करने वाला अगर झांसे में आ गया तो नुकसान तय है। इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि जिस नंबर से फोन आता है उसे ट्रेस किया ही नहीं जा सकता क्योंकि वह नंबर असल दुनिया में तो होता ही नहीं है, वह एक आभासी नंबर होता है।
एक्सपर्ट्स की राय और तमाम तरह की जानकारी जुटाने के बाद एक ही बात सामने आती है कि ऑनलाइन के खतरों से निपटने का सबसे कारगर तरीका है सतर्कता। ऑनलाइन खौफ संबंधी परिदृश्य एकदम काला भी नहीं है, तकनीक विकसित हो रही है तो उससे उपजे खतरों से निपटने के उपाय भी ढूंढे जा रहे हैं। अगर ठगी रूपी रात है तो उम्मीदों की भोर भी होगी, एक शायर की दो पंक्तियों की मानिंद-
दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।
अंधेरे का भी उजला पक्ष सामने आएगा और ‘लालच’ और ‘खौफ’ पर हावी होगी समझदारी और सतर्कता। क्योंकि तकनीकी विस्तार की गति को कोई रोक नहीं सकता। खतरे के रूप में यह तकनीक पेजर की भांति बैक भी मार सकती है और वर्चुअल कॉल की तरह एडवांस भी हो सकती है।