कमलेश भट्ट
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव और पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। समुद्र तल से लगभग 3050 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय की अस्थियों की पूजा की जाती है।
मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्हें ब्रह्मांड का चक्कर लगाने को कहा। उन्होंने कहा कि जो ब्रह्मांड के चक्कर लगाकर पहले वापस आएगा, उसकी पूजा समस्त देवी-देवताओं में पहले की जाएगी।
पिता का यह आदेश सुनकर कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर बैठकर ब्रह्मांड का चक्कर लगाने चले गए, जबकि गणेश ने अपने माता-पिता यानी शिव-पार्वती के चक्कर लगाकर कहा कि उनके लिए सारा ब्रह्मांड वही है, इसलिए आपकी परिक्रमा करना मेरे लिए ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के समान है।
भगवान शिव गणेश की इस बुद्धिमत्ाा से प्रसन्न हो गए और अपने वचन के अनुसार वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य से पहले समस्त देवी-देवताओं से पूर्व उनकी पूजा की जाएगी। वहीं, ब्रह्मांड भ्रमण कर लौटे कार्तिकेय इससे क्रोधित हो गए। महाबलिदान के बाद वे क्रौंच पर्वत चले गए, जिसे कार्तिक स्वामी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय की अस्थियां आज भी मंदिर में मौजूद हैं, जिनकी पूजा करने लाखों भक्त हर साल कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचते हैं।
इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होने की मान्यता है। कार्तिक स्वामी मंदिर में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ होता है। बैकुंठ चतुर्दशी पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा और ज्येष्ठ माह में मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां संतान के लिए दंपति दीपदान करते हैं।
फोटो स्रोत : उत्तराखंड पर्यटन विभाग की वेबसाइट से