नई दिल्ली, 5 नवंबर (भाषा)
SC decision on private property: सुप्रीम कोर्ट ने 7:2 के बहुमत के फैसले में मंगलवार को कहा कि संविधान के तहत सरकारों को ‘‘आम भलाई” के लिए निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है। हालांकि, भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सरकारें कुछ मामलों में निजी संपत्तियों पर दावा कर सकती हैं।
प्रधान न्यायाधीश द्वारा सुनाए गए बहुमत के फैसले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया गया जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत वितरण के लिए सरकारों द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने और उस पीठ के छह अन्य न्यायाधीशों के लिए फैसला लिखा, जिसने इस जटिल कानूनी सवाल पर निर्णय किया कि क्या निजी संपत्तियों को अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘‘समुदाय के भौतिक संसाधन” माना जा सकता है और ‘‘आम भलाई” के वास्ते वितरण के लिए सरकार के अधिकारियों द्वारा अपने कब्जे में लिया जा सकता है। इसने उन कई फैसलों को पलट दिया, जिनमें समाजवादी सोच को अपनाया था और कहा गया था कि सरकारें आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकती हैं।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने प्रधान न्यायाधीश द्वारा लिखे गए बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमत जताई, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई। फैसला अभी सुनाया जा रहा है।
अनुच्छेद 31सी, अनुच्छेद 39(बी) और (सी) के तहत बनाए गए कानून की रक्षा करता है जो सरकार को आम भलाई के वास्ते वितरण के लिए निजी संपत्तियों सहित समुदाय के भौतिक संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देता है।
शीर्ष अदालत ने 16 याचिकाओं पर सुनवाई की जिनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय 8-ए का विरोध किया है। 1986 में जोड़ा गया यह अध्याय सरकारी प्राधिकारियों को उपकरित भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है जिस पर वे बने हैं, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनर्स्थापन उद्देश्यों के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।