द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी ने डेनमार्क पर कब्जा कर लिया था। डेनमार्क के यहूदी नागरिकों को गिरफ्तार करने और यातना शिविरों में भेजने की योजना बनाई जा रही थी। उस समय डेनमार्क के राजा क्रिश्चियन दसवें ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया। उन्होंने घोषणा की कि वे स्वयं पीले रंग का सितारा अपने कोट पर पहनेंगे, जो कि यहूदियों की पहचान का प्रतीक था। राजा क्रिश्चियन दसवें ने कहा, ‘हम सभी डेनिश नागरिक हैं। हमारे बीच कोई भेदभाव नहीं है।’ राजा के इस साहसिक कदम से प्रेरित होकर डेनमार्क के हजारों नागरिकों ने भी अपने कपड़ों पर पीले सितारे लगा लिए। इससे नाजी सैनिकों के लिए यह पहचानना असंभव हो गया कि कौन यहूदी है और कौन नहीं। इस दौरान डेनमार्क के मछुआरों और नाविकों ने अपनी छोटी-छोटी नौकाओं में यहूदी परिवारों को छिपाकर रात के अंधेरे में स्वीडन की ओर ले जाना शुरू कर दिया। इस पूरे अभियान में डेनमार्क के चर्च, विश्वविद्यालय और यहां तक कि पुलिस-प्रशासन ने भी सहयोग दिया। उन्होंने यहूदी परिवारों को छिपाने, उन्हें भोजन और आश्रय देने में भरपूर मदद की। इस प्रयास के परिणामस्वरूप डेनमार्क के 99 प्रतिशत से अधिक यहूदी नागरिक बच गए। राजा क्रिश्चियन दसवें से लेकर मछुआरों तक हर किसी ने अपनी जान जोखिम में डालकर मानवता की रक्षा की। प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार