सिरसा, 5 नवंबर (हप्र)
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नयी दिल्ली के निर्देशन में मंगलवार को गांव फरवाई खुर्द में पराली प्रबंधन के लिए एक विशेष प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक डा. लिवलीन शुक्ला, वैज्ञानिक (इंजीनियर) डा. सतीश और एम डी बायोकॉल्स के मार्केटिंग डायरेक्टर राजेश सचदेवा की देखरेख में किसान राजेंद्र कुमार के खेत में पूसा डीकम्पोजर उत्पाद का प्रयोग कर पराली गलाने की प्रक्रिया प्रदर्शित की गई। डा. लिवलीन शुक्ला ने कहा कि किसान पराली को जलाने के बजाय आईएआरआई की उन्नत तकनीक से विकसित पूसा डीकम्पोजर का उपयोग कर सकते हैं। इस विधि से पराली को गलाकर उसे जैविक खाद में बदला जा सकता है, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। उन्होंने बताया कि पूसा डीकम्पोजर का उपयोग पराली के साथ-साथ रसोई के कचरे के प्रबंधन के लिए भी किया जा सकता है, जिससे कचरा गलाकर खेतों में जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जा सके। पहले यह उत्पाद कैप्सूल के रूप में उपलब्ध था, जिसे तैयार करने में 4-5 दिन लगते थे और पराली को खाद में बदलने में 30 दिनों से अधिक समय लगता था। अब यह पाउडर के रूप में उपलब्ध है, जिसे सीधा पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव किया जा सकता है और यह पराली को 15 दिनों के भीतर खाद में बदल देता है।