शमीम शर्मा
हिजाब मुस्लिम महिलाओं का एक ऐसा परिधान है जिसे पहनने पर महिला का सिर और गर्दन आदि ढके रहते हैं, पर चेहरा दिखाई देता है। पूरी दुनिया देख रही है कि लम्बे अरसे से ईरान की महिलाएं हिजाब क्रान्ति कर रही हैं कि नहीं पहनना हिजाब। जब उस मुल्क का तंत्र जबरन उन्हें हिजाब पहनने के लिये बाध्य करता है तो गुस्से में आकर वहां की एक युवती अपने अधोवस्त्र के अलावा सारे कपड़े उतार फेंकती है। उस नवयुवती को किसी ने वासना या छेड़छाड़ की निगाह से नहीं देखा क्योंकि उसकी हरकतों में सवाल नग्नता और अश्लीलता का नहीं है। सवाल है उसकी आजादी का। वह हिसाब मांग रही है कि सिर्फ उसी के लिये हिजाब क्यों?
ईरान में हिजाब ठीक से न पहनने पर पुलिस की पैनी नजर पहुंचते ही लड़कियों पर आफत टूट पड़ती है। यूनिवर्सिटी में एक गार्ड द्वारा हिजाब ठीक से न पहनने वाली युवती को जिस हिंसक ढंग से लताड़ा गया, उसके बारे में कोई कुछ नहीं बोलेगा। सारे पैरोकार देश चुप्पी साध लेंगे। न ही कोई यह पूछेगा कि वह युवती अब है कहां। जिंदा है या दुनिया को अलविदा कह चुकी? कुछ नहीं पता। क्या लड़कियां बगावत नहीं कर सकतीं?
उसकी बगावत के इतने ही मायने हैं कि कोई भी श्ाासक अपनी प्रजा को अपने निरंकुश व्यवहार में बांध कर नहीं रख सकता। और फिर सारी बंदिशें महिलाओं के लिये ही क्यों? क्या उनका कोई विधान आदमियों का खून-खराबा और बलात्कार जैसे कृत्यों की स्वतंत्रता देता है? इसमें कोई श्ाक नहीं कि स्त्री हो या पुरुष सबको श्ाालीन परिधान पहनने चाहिए पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि औरत को नकाब-हिजाब या घूंघट-पर्दे की बेड़ियों में जकड़ दिया जाये। खासतौर से आज के बदलते हुए परिवेश में।
हिजाब को लेकर अपने देश में भी उथल-पुथल होती रही है। पर यहां हिसाब उलटा है। अपने यहां हिजाब क्रान्ति इस बात की है कि हमें हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है। अपनी बेटियां हिजाब न पहनने देने पर बिफर रही हैं। है न हैरानी की बात? खासतौर पर तब जब पूरी दुनिया की महिला आजादी चाह रही है और अपनी मुस्लिम बहनें हिजाब-हिजाब पुकार रही हैं।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी ब्यूटी पार्लर चली गई। वा थी कसूत्ती भूंडी। जद पार्लर आली ने चेहरा चमकान के पांच हजार रूपिये बताये तो वा बोल्ली- मेरा इतणा ब्योंत कोणी। किमें सस्ता सौदा बता। पार्लर आली छोरी बोल्ली- आड़ै तैं खड़ी हो ले अर घूंघट काढ़ ले। धेल्ला ए कोनीं लाग्गैगा।