कुरुक्षेत्र, 7 नवंबर (हप्र)
भारतीय ज्ञान परम्परा के शिखर पुरूष और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के ब्रह्मा ऋषिकल्प दीनानाथ बतरा का आज बृहस्पतिवार को निधन हो गया है। शिक्षा जगत में उनके निधन को राष्ट्रीय क्षति माना जा रहा है। दीनानाथ का जन्म 05 मार्च 1930 को डेरा गाजीखान जो वर्तमान में पाकिस्तान में है, में हुआ था। लाहौर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया और वे वर्ष 1965 से लेकर 1990 तक कुरुक्षेत्र के श्रीमद्भगवद् गीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य रहे। वे शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के संयोजक के तौर पर शिक्षा के बदलाव की लड़ाई लड़ते रहे। वे 1955 से 1965 तक डीएवी विद्यालय डेराबसी पंजाब के प्राचार्य भी रहे। आपातकाल के दौरान वे जेल में भी रहे। उन्होंने हरियाणा शिक्षा बोर्ड की पाठ्य योजना, दिल्ली शिक्षा बोर्ड, दिल्ली शिक्षा कोड समिति, दिल्ली नैतिक शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। वे हरियाणा अध्यापक संघ के महामंत्री भी रहे। इतना ही नहीं वे अखिल भारतीय हिन्दुस्तान स्काउटस गाइड के कार्यकारी अध्यक्ष रहे। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री तथा उपाध्यक्ष रहे। विद्या भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। वे पंचनद शोध संस्थान के निदेशक रहे तथा संरक्षक रहे। एनसीईआरटी की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। भारतीय शिक्षा शोध संस्थान लखनऊ की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। उन्होंने शिक्षा का भारतीय करण, तेजो में भारत, प्रेरणा दीप (1-4 भाग), विद्यालय प्रवृतियों का घर, शिक्षण में त्रिवेणी, शिक्षा परीक्षा तथा मूल्यांकन की त्रिवेणी पुस्तकें लिखीं। उन्होंने कईं क्षेत्रों में कईं बार मेडल भी प्राप्त किया। हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान भी मिला। अध्यापन के क्षेत्र में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा और भी कईं सम्मान उन्हें प्राप्त हुए।