रतन चंद ‘रत्नेश’
दिवंगत आत्माओं का आह्वान करने की प्रक्रिया प्रेतवाणी, चक्रायन या प्लांचेट कहलाती है। विलक्षण व बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के बारे में विदित है कि वे इस विधि का प्रयोग किया करते थे। अपने जीवनकाल उन्होंने कई अशरीरी आत्माओं से संपर्क साधा था, इसका लिखित प्रमाण शांति निकेतन में रखी आठ कापियों में मिलता है। नवंबर-दिसंबर 1929 के चार दिनों में कई लोगों से कई बार किए वार्तालापों का यह दस्तावेज है जिस पर बांग्ला के सुप्रसिद्ध लेखक अमिताभ चौधरी ने पूर्ण जानकारी प्राप्त कर एक लेख लिखा था, जिसे बाद में पुस्तकाकार दिया गया। हिंदी में इसे अनुवाद किया है म. ना. भारतीभक्त ने।
पुस्तक ‘रवींद्रनाथ की परलोक चर्चा’ में उनकी पारलौकिक संपर्क की विस्तृत जानकारी मिलती है। गुरुदेव के निजी सचिव डॉ. अमिय चंद्र चक्रवर्ती और एक अन्य सहयोगी मोहनलाल गंगोपाध्याय ने उन चार दिनों के दौरान अशरीरी आत्माओं से हुई बातचीत को लिपिबद्ध किया था और माध्यम बनी थी गुरुदेव के मित्र मोहित चंद्र सेन की पुत्री उमा देवी यानी कि बूला। गुरुदेव के समक्ष बूला हाथ में पेंसिल और एक कापी लेकर बैठा करती थी। साक्षी रहते थे कुछ अंतरंग मित्र और सगे-संबंधी।
वर्ष 1929 के नवंबर माह में रवींद्रनाथ ने जिन दिवंगत आत्माओं को प्लांचेट के माध्यम से बुलाया था, उनमें उनकी पत्नी, पुत्री, भाभी कादंबरी देवी, भाई जयोतिरींद्रनाथ, सत्येंद्रनाथ, हितेंद्रनाथ, सत्यजित राय के पिता सुकुमार राय जैसे करीबी लोग तो थे ही, कुछ उनके अपरिचित प्रशंसक और घर के नौकर-चाकर भी बिन बुलाए आ गए थे।
दरअसल, रवींद्रनाथ का पैतृक निवास जोड़ासांको की ठाकुरबाड़ी में प्लांचेट पर परलोक चर्चा एक अर्से से होती आ रही थी और बारह वर्ष की अवस्था में ही बालक रवि का इससे साक्षात्कार हो चुका था। उनकी कई रचनाओं में भी इसकी झलक मिलती है।
पुस्तक : रवींद्रनाथ की परलोक चर्चा लेखक : अमिताभ चौधरी अनुवाद : म.ना. भारतीभक्त प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 199 मूल्य : रु. 299.