मात्र बारह वर्ष की उम्र में पं. रविशंकर अपने बड़े भाई उदय शंकर के नृत्य दल के साथ पेरिस में थे। एक दिन वे संगीत कार्यक्रम में पहुंचे, जहां महान सितारवादक उस्ताद इनायत खान साहब का कार्यक्रम था। जब उस्ताद साहब ने सितार बजाया, तो बाल रविशंकर मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम के बाद वे सीधे उस्ताद साहब के पास गए और बोले, ‘मैं आपसे सितार सीखना चाहता हूं।’ उस्ताद ने पूछा, ‘बेटा, क्या तुम जानते हो कि सितार सीखने का मतलब क्या है? यह कोई खेल नहीं है।’ रविशंकर ने दृढ़ता से कहा, ‘मैं समझता हूं उस्ताद जी। मैं पूरी लगन से सीखूंगा।’ उस्ताद ने कहा, ‘ठीक है। कल सुबह आ जाओ।’ अगले दिन से रविशंकर का कठिन साधना का दौर शुरू हुआ। वे सुबह 4 बजे उठते, रियाज करते। दिन में नृत्य की प्रैक्टिस और रात को फिर सितार। कई बार उंगलियों से खून निकलता, लेकिन वे नहीं रुके। एक दिन उस्ताद ने कहा, ‘रवि, तुम्हें तय करना होगा – नृत्य या सितार। दोनों साथ नहीं चल सकते।’ रविशंकर ने तत्काल निर्णय लिया। उन्होंने नृत्य छोड़ दिया और पूरी तरह सितार को समर्पित हो गए। सात वर्षों तक वे गुरु के साथ मेहनत करते रहे। प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार