सीज़न के बदलाव विशेष तौर पर सर्दी की शुरुआत में कई लोगों, खासकर बच्चों को गले में खराश, दर्द, बुखार, नाक बहना जैसी दिक्कतें होती हैं। ये वायुजनित एलर्जी के संकेत हैं। एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों या कारकों की जांच, उपचार और एहतियात को लेकर नई दिल्ली स्थित डॉ. विक्रम जग्गी से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
आजकल के बदलते मौसम में तापमान में आने वाले बदलाव की वजह से कुछ लोग एलर्जी का बहुत जल्दी शिकार होते हैं जिसे सीजनल राइनाइटिस या साइनोसाइटिस एलर्जी कहा जाता है। मरीज को गले में खराश, बुखार, नाक बहना, फेफड़ों में घरघराहट, सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और सूखापन जैसी समस्याएं होती हैं। वैसे तो एलर्जी किसी व्यक्ति के अंदर एक तरह की टेंडेंसी या प्रवृत्ति है। ऐसे व्यक्ति का इम्यून सिस्टम अति संवेदनशील होता है और एलर्जेन तत्वों की चपेट में जल्दी आ जाता है।
बदलते मौसम में वातावरण में मौजूद धूल-मिट्टी के कण और जहरीले प्रदूषक तत्व व्यक्ति की सांस या मुंह के जरिये शरीर में पहुंचते हैं। तो उसका शरीर स्वीकार नहीं करता, इम्यून सिस्टम रक्त में हिस्टामाइन रसायन का उत्सर्जन करता है और उन चीजों के प्रति ओवर-रिएक्ट करता है। इन चीजों के रिएक्शन के कारण एलर्जिक मरीज के अतिसंवेदनशील अंगों में एलर्जी के लक्षण उभर आते हैं। समुचित उपचार के अभाव में एलर्जी पीड़ित को सांस लेने में कठिनाई तो होती ही है, साइनस संक्रमण, लिम्फ नोड संक्रमण और अस्थमा जैसी गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं। एलर्जी एक बहुत कॉमन बीमारी है जो पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की वजह से किसी भी उम्र में देखने को मिलती है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में करीब 20-30 प्रतिशत लोग एलर्जी से पीड़ित हैं। जबकि अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों में एलर्जी के मरीजों की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक है यानी इतनी आबादी किसी न किसी एलर्जी से पीड़ित है।
किसे है रिस्क
एलर्जी एक बहुत आम सी बीमारी है जो पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की वजह से किसी भी उम्र में देखने को मिलती है। इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण बच्चों और बुजुर्गों में एलर्जी होने की आशंका अन्य बड़ों से अधिक होती है। यह एलर्जी आनुवंशिक भी होती है, तभी छोटे बच्चों में भी एलर्जी देखी जाती है। लेकिन कई लोगों को इस बात का पता नहीं चलता कि वे बार-बार बीमार पड़ रहे हैं और इसकी वजह उनका वातावरण भी हो सकता है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
बदलते मौसम में अक्सर नजला, खांसी-जुकाम देखने को मिलता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन अगर कोई मरीज बार-बार इसकी पकड़ में आता है या बिना किसी बीमारी के खांसी-जुकाम लंबे समय तक बना रहता है, तो यह एलर्जी का संकेत है। ऐसे में डॉक्टरी सलाह ले लेनी चाहिये।
कैसे होता है डायग्नोज
इस बात का पता लगाना जरूरी है कि व्यक्ति को किस चीज से एलर्जी है। तभी वह उससे बच सकता है और समुचित इलाज करा सकता है। सबसे पहले डॉक्टर व्यक्ति की केस हिस्ट्री के बारे में पूछते हैं। एलर्जी की पहचान करने के लिए मुख्यतया दो तरह के टेस्ट किए जाते हैं :
ब्लड टेस्ट- मरीज को खांसी-जुकाम एलर्जी की वजह से है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। लेकिन इससे भी कई बार यह पता लगाना मुश्किल होता है कि एलर्जी किस चीज से है। ब्लड टेस्ट के रिजल्ट ठीक न आने की वजह से एक्सपर्ट इसे सटीक नहीं मानते।
स्किन प्रिक टेस्ट- मरीज को किस चीज से एलर्जी है, यह जानने के लिए स्किन प्रिक टेस्ट किया जाता है। इसमें व्यक्ति को जिस चीज से एलर्जी की आशंका होती है, उसका कंसंट्रेशन सीरिंज की मदद से मरीज की पीठ पर पैच के रूप में लगाया जाता है। कुछ ही मिनटों में स्किन पर उसका रिएक्शन देखने को मिल जाता है। स्किन टेस्ट के परिणाम प्रमाणिक माने जाते हैं।
उपचार
मौसम के बदलाव के समय वातावरण में मौजूद एलर्जेन तत्वों के कारण ट्रिगर हुई एलर्जी के लक्षणों को दवाइयों के जरिये रोकथाम की जाती है। मरीज की स्थिति और उम्र के हिसाब से नाक में स्प्रे डालने या खाने के लिए यानी ओरल दवाई दी जाती है। इससे एलर्जी के लक्षण कुछ समय के लिए दब जाते हैं और मरीज को आराम मिलता है।
लंबे समय तक चलने वाली पेरेनियल वायुजनित एलर्जी का उपचार दूसरे तरीके से किया जाता है। इसमें मरीज की इम्यून सिस्टम की अति-संवेदनशीलता को कम किया जाता है और नई एलर्जी को विकसित होने से रोका जाता है। मरीज को एलर्जेन इम्यूनो थेरेपी, एलर्जी शॉट्स या इंजेक्शन दिए जाते हैं। शाट्स में मरीज के शरीर में जिस चीज की एलर्जी डायग्नोज हुई है, उस एलर्जेन चीज के टीके बनाकर लगाए जाते हैं। शुरुआत में मरीज को ये शाट्स बहुत कम डोज में दिए जाते हैं ताकि शरीर में उस चीज की सहिष्णुता बढ़े। धीरे-धीरे इनकी डोज बढ़ाई जाती है। इससे शरीर में उस चीज की एलर्जी जड़ से खत्म कर दी जाती है। यह इम्यूनो थेरेपी तकरीबन तीन साल तक चलती है।
बरतें सावधानी
एलर्जेन तत्वों से दूरी बनाकर और कुछ सावधानी बरत कर एलर्जी से यथासंभव बचाव किया जा सकता है। सबसे जरूरी है कि एलर्जी का पता लगाने के लिए व्यक्ति अच्छी लैब में स्किन प्रिक टेस्ट कराएं। ये टेस्ट तकरीबन सभी बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों व प्राइवेट लैबोरेटरीज में किए जाते हैं। वहीं मौसम में बदलाव होने पर सावधान रहें। साथ ही यदि आपको धूल-मिट्टी से एलर्जी है तो घर से बाहर जाने से पहले नाक पर रुमाल बांधें या मास्क पहनें। एक और जरूरी बात कि घर में साफ-सफाई का ध्यान रखें। दीवारों पर फंगस जालों को नियमित रूप से साफ करते रहें। खिड़की-दरवाजों पर जाली वाले दरवाजे लगाएं ताकि समुचित वेंटिलेशन हो और सूरज की रोशनी आ सके। घर में एयर प्योरीफायर का इस्तेमाल करें या फिर एयर कंडीश्नर को हाई टैम्परेचर पर यूज करें तो वह टैम्परेचर ठीक रखता है। धुएं से बचाव के लिए खाना बनाते हुए चिमनी या एग्जॉस्ट फैन का प्रयोग करें। बिना डॉक्टर के परामर्श किसी भी तरह की एलर्जेन दवाई न लें।