ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 19 नवंबर
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने कहा कि जैसे पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं, वैसे ही बीजेपी की नयी सरकार की विफलताएं भी शुरुआत में ही उजागर हो गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार भी पिछली बीजेपी सरकार की तरह किसानों को खाद और एमएसपी देने में नाकाम रही है। हुड्डा मंगलवार को विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। इस मौके पर गीता भुक्कल, आफताब अहमद और बीबी बतरा सहित कई विधायक भी मौजूद थे।
हुड्डा ने कहा कि सदन में कांग्रेस के सवालों का सरकार संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई। खाद की उपलब्धता पर सरकार ने गुमराह किया और दावा किया कि खाद की कोई किल्लत नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि खाद की कमी के कारण पूरे हरियाणा के किसान त्राहिमाम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हरियाणा के इतिहास में पहली बार थानों के भीतर और पुलिस सुरक्षा में खाद बांटी जा रही है। हर बार किसानों को बुआई का सीजन गुजर जाने के बाद खाद दी जाती है।”
कौशल निगम पर आलोचना : कौशल निगम की नीति को लेकर हुड्डा ने कहा, “यह नीति पूरी तरह से आरक्षण और मेरिट विरोधी है। न इसमें आरक्षण है, न मेरिट और न पारदर्शिता।” कांग्रेस ने सदन में मांग की थी कि ठेका प्रथा बंद होनी चाहिए और कौशल निगम के कर्मचारियों को नियमित किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने इस मांग को खारिज करते हुए युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
हुड्डा ने कहा कि बीजेपी ने चुनाव में दो लाख नौकरियां देने का वादा किया था। लेकिन ना तो सरकार इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, और ना ही नई भर्तियों की कोई प्रक्रिया शुरू की गई है। हरियाणा में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। 54 प्रतिशत युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों और देशों में जा रहे हैं।
उन्होंने मौजूदा सरकार पर हमला करते हुए कहा, “कांग्रेस के शासनकाल में हरियाणा विकास में नंबर वन था, लेकिन बीजेपी ने इसे गरीबी में नंबर वन बना दिया है।” हुड्डा ने कैग की ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसने कांग्रेस के आरोपों की पुष्टि कर दी है। बीजेपी को बताना चाहिए कि उसके विकास के दावों का क्या हुआ। अगर विकास हुआ है तो फिर 70 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे कैसे पहुंच गई।
चुनावी वादों पर उठाए सवाल
हुड्डा ने बीजेपी के चुनावी वादों पर सवाल उठाते हुए कहा कि पार्टी ने धान का 3100 रुपये प्रति क्विंटल रेट देने का वादा किया था। लेकिन सच्चाई यह है कि किसानों को एमएसपी तक नहीं मिली। उन्हें अपनी फसल 200-400 रुपये प्रति क्विंटल कम रेट पर बेचनी पड़ी। इसी तरह, महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने का वादा भी पूरा नहीं हुआ।