एक बार लेखक स्टीफन ज़्वेग को अपनी अस्वीकृत पांडुलिपि के कारण गहरी निराशा हुई। उनके कलाकार मित्र ने उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाया और मूर्तियों को दिखाने लगा। दिखाते-दिखाते एक मूर्ति के सामने वह रुका और बोला, ‘यह मेरी नयी रचना है।’ यह कहते हुए उसने मूर्ति पर से गीला कपड़ा हटाया। फिर मूर्ति को ध्यान से देखते हुए उसने बड़बड़ाते हुए कहा, ‘इसके कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है।’ उसने उसे ठीक किया। फिर कुछ कदम दूर जाकर मूर्ति को देखा और फिर से कुछ ठीक किया। इस तरह एक घंटा निकल गया। ज़्वेग चुपचाप खड़े-खड़े यह सब देख रहे थे। जब मूर्ति से संतुष्ट हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया और उसे फिर से मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया। दरवाजे तक पहुंचते हुए उसकी नजर अचानक पीछे गई, तो उसने देखा कि कोई व्यक्ति उसके पीछे-पीछे आ रहा है। ‘अरे, यह अजनबी कौन है?’ उसने सोचा। और फिर उसे याद आया कि यह तो वही मित्र है, जिसे वह स्टूडियो दिखाने के लिए साथ लाया था। वह लजा गया और बोला, ‘मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना। मैं आपको एकदम भूल ही गया था।’ ज़्वेग ने लिखा है, ‘उस दिन मुझे यह समझ में आया कि मेरी रचनाओं में क्या कमी थी। शक्तिशाली रचना तभी तैयार होती है, जब आदमी सारी शक्तियों को बटोरकर एक ही जगह पर केंद्रित कर देता है।’
प्रस्तुति : पूनम पांडे