शमीम शर्मा
हरियाणा में अधिकांशतः ‘श’ का उच्चारण ‘स’ के रूप में किया जाता है। इसी आधार पर एक प्रखर बुद्धि बालक ने भाग्यशाली शब्द का अर्थ करते हुए अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखा- जिसके भाग्य में साली हो उसे भाग्यसाली कहा जाता है। मैं इस बच्चे के उत्तर से सौ फीसदी सहमत हूं क्योंकि आजकल घरों में एक बिटिया का होना ही मुश्किल है दूसरी तो आयेगी ही कहां से? और दूसरी बिटिया नहीं होगी तो साली आयेगी कहां से? गौर से देखें तो दो लड़कियां तो विरलों के घरों में हैं। या तो वहां जहां जुड़वां बेटियां पैदा हों या वहां जहां अल्ट्रासाउंड की मशीन गलत आंकड़े दे दे।
साली और साली से जुड़े सारे लोकाचार अब विलुप्त होते प्रतीत हो रहे हैं। शादी में जूता छिपाई की रस्म सालियां बहुत चाव से किया करतीं पर अब दूल्हे मियां को जूते छिपने से निजात मिलती दिख रही है। और ऊपर से जूता छिपाई का नेग बचेगा सो अलग। इतिहास साक्षी है कि सालियों ने अपनी बहन के बच्चों के लालन-पालन में गजब का सहयोग दिया है। वे भी क्या दिन थे जब जाप्पा निकलवाने का काम सालियां भी किया करतीं और बच्चे अपनी मौसी के हाथों पल जाया करते। पर अब तो बालकों की मौसी भी नेपथ्य में खड़ी नजर आ रही है। आने वाली पीढ़ी के बच्चे पूछा करेंगे कि मौसी किसे कहते हैं। अब उन्हें कौन बताये कि जो बिल्कुल मां जैसी होती है उसे मासी या मौसी कहते हैं।
‘चन्द्रावल’ फिल्म का गाना ‘जीजा तू काला मैं गौरी घणी’ ने जो धूम मचाई थी उसे गाकर सालियां अब भी तालियां बटोर रही हैं। इसी तरह एक लोकगीत और था जिसने खूब धमाल किया- ‘भाई रै तेरी दो दो साली, एक गौरी एक काली।’ जब एक साली ने बार-बार अपने जीजू को कहा कि उसकी बहन तो गाय है गाय तो जीजे से रहा नहीं गया और वह माथे पर हाथ रखकर बोला- ‘फिर मेरे साथ क्यों बांध दी, किसी गौशाला में छोड़ कर आते।’
सालों को तो जीजा सिरदर्द मानते हैं पर सालियां तो उन्हें झंडु बाम जैसी लगती हैं। साली प्रकरण में एक सत्य यह भी है कि जब साला घर आये तो जीजे को खुशी दिखानी पड़ती है पर साली आये तो खुशी छिपानी पड़ती है।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी के टाबरां नैं उसकी नास्सां मैं किमें घणा ए धुम्मा कर राख्या था तो वा छोह मैं अपणे घरआले नत्थू तै बोल्ली- मन्नैं तेरे टाबरां का ठेक्का नीं ले राख्या। नत्थू पहल्ले ही भरा बैठ्या था, बोल्या- तो यो ठेक्का किसे और नैं दे द्यूं?