ऋषभ मिश्रा
वैसे तो योग जीवन का एक अहम हिस्सा होना ही चाहिए, किन्तु इसे दिन विशेष के रूप में मनाने का प्रमुख उद्देश्य आध्यात्मिक और शारीरिक अभ्यास के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाना है। इस बार के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का थीम ‘मानवता के लिए योग’ है। हालांकि योग हमारे देश की ऐसी ‘सॉफ्ट पावर’ है, जिसका लाभ हम कभी उठा ही नहीं पाए। वहीं पश्चिमी देशों में अब इसी योग को कभी ‘माइंडफुलनेस’ के नाम से तो कभी ‘वैलनेस’ के नाम से बेचा जा रहा है।
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसने दुनिया को योग निर्यात किया है। भारत ने दुनिया को योग के जरिए ये बताया है कि जीवन जीने की पद्धति क्या होनी चाहिए। योग असल में जीवन जीने की एक पद्धति है, जिसे भारत ने पूरी दुनिया को निर्यात किया है।
हमारा देश आजादी के बाद से योग की सॉफ्ट पावर का उस तरह से विस्तार नहीं कर पाया जिस तरह से दक्षिण कोरिया ने कोरियन पॉप (के-पॉप) को अपनी ताकत बनाया। अमेरिका ने हॉलीवुड की फिल्मों के जरिए अपनी सुपर पावर वाली पहचान बनाई, जबकि योग हमें भारतीय संस्कृति से मिला सबसे कीमती तोहफा अथवा उपहार है। हजारों साल पुराना योग आज भी नया और प्रासंगिक है। योग शब्द का सबसे प्राचीन उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण ने गीता में योग के महत्व की व्याख्या की थी, और इसे आत्मा से परमात्मा तक पहुंचने की एक शैली बताया था।
इसके अलावा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को सबसे बड़ा योगी माना गया है और कई वैज्ञानिकों के अध्ययनों में इस बात का जिक्र भी है। कुछ वर्ष पहले ‘अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज’ ने भगवान शिव को योग का ग्रैंड-मास्टर बताया था, और इसी अध्ययन में ये भी लिखा था कि भगवान शिव का ‘नटराज अवतार’ यानी कि शिव की नृत्य करते हुए अलग-अलग मुद्राएं, अलग-अलग योगासनों को जन्म देती हैं। सूर्य नमस्कार योग के सबसे चर्चित आसनों में से एक है, क्योंकि इसमें 12 अलग-अलग तरह के आसन एक साथ किए जाते हैं। यह बात आश्चर्य में डालने वाली है कि 30 मिनट तक सूर्य नमस्कार करने से लगभग साढ़े चार सौ कैलोरी बर्न होती है। जबकि किसी जिम में 30 मिनट तक वेट-लिफ्टिंग करने या व्यायाम करने से 199 कैलोरी और 30 मिनट तक दौड़ने से लगभग 414 कैलोरी बर्न होती है। यानी जो लोग कैलोरी बर्न करने को फिटनेस का पैमाना मानते हैं उनके लिए भी योग सबसे अच्छा व्यायाम साबित हो सकता है।
महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है, और पश्चिमी देशों में योग का प्रचार प्रसार करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को दिया जाता है। वर्ष 1893 में जब अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद को सम्बोधित किया था, तब उन्होंने पश्चिमी देशों का परिचय योग से भी कराया था। लेकिन विडंबना यह है कि लोकप्रियता के बावजूद इसे वहां लोग योग के नाम से नहीं जानते हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन और बाकी पश्चिमी देशों में भारत के योग और अध्यात्म को अब अलग-अलग नामों से जाना भी जाता है और बेचा भी जाता है। अमेरिका में अध्यात्म के लिए ‘माइंडफुलनेस’ शब्द का इस्तेमाल होता है। इसी तरह ब्रिटेन में योग और अध्यात्म के लिए ‘वैलनेस’ और ‘मैडिटेशन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है, और इसके जरिए बड़ी प्राइवेट मल्टीनेशनल कंपनियां हजारों करोड़ों रुपये कमा रही हैं। आज अमेरिका में योग का कारोबार 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का है। ब्रिटेन में 7 हजार 920 करोड़ रुपये, चीन में लगभग 27 हजार करोड़ रुपये और ऑस्ट्रेलिया में योग का कारोबार 4700 करोड़ रुपये का है। लेकिन इन देशों में ये कारोबार ‘वेलनेस इंडस्ट्री’ के नाम पर होता है न कि योग के नाम पर।
भारत ने दुनिया को योग,आयुर्वेद और अध्यात्म दिया, लेकिन हम इन्हें भारत के ब्रांड के रूप में स्थापित नहीं कर पाए। जबकि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इसका पूरा फायदा उठाया। उदाहरण के लिए अमेरिका के कैनसस सिटी के एक कैथोलिक कॉलेज में वर्ष 2017 के पहले तक छात्रों को योग की क्लास दी जाती थी। लेकिन 2017 में वहां के कुछ लोगों ने इसका विरोध इस बात को लेकर किया कि योग हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार करता है, इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। इस विवाद के बाद इस कॉलेज ने इसका नाम बदलकर ‘लाइफस्टाइल फिटनेस’ रख दिया। इसी तरह से पश्चिमी देशों में योग के दौरान ‘ॐ’ शब्द का उच्चारण नहीं किया जाता, बल्कि इसकी जगह इसमें धर्म से जुड़ी प्रार्थनाएं और मंत्रों का उच्चारण होता है। जाहिर है कि योग के महत्व को हम अपने ही देश में कुछ कम आंक पाए हैं, जबकि दूसरे अन्य देशों में लोग इसके महत्व से भलीभांति परिचित हो चुके हैं, और इसको अपने अभ्यास में लेकर भी आने लगे हैं। कभी तो इसका नाम बदलकर तो कभी इसका स्वरूप बदलकर।