अरुण नैथानी
कहते हैं एक बार नारद मुनि धरती का भ्रमण करते हुए श्रीलंका पहुंचे तो लंकापति रावण ने उन्हें अपनी सोने की लंका, हथियारों की फैक्ट्री, शस्त्रागार और वेधशालाएं दिखाई। फिर नारद से पूछा कैसी लगी मेरी उपलब्धि? रावण नारद के मुंह से प्रशंसा सुनना चाहता था। लेकिन नारद ने दो टूक शब्दों में कहा ndash; ‘रावण तेरा पतन निश्चित है। तूने सब-कुछ तो बनवाया लेकिन अपने देश में चरित्र निर्माणशाला नहीं बनवायी।’ नारद की टिप्पणी आज भी प्रसंगिक है। किसी देश के नागरिकों का चरित्र ही मजबूत राष्ट्र की आधारशिला होती है। अपने देश में भी इंटरनेट व सोशल मीडिया के कुछ प्लेटफॉर्म पर जिस तरह पोर्न सामग्री का तीव्र प्रवाह है, वह देश की युवा ऊर्जा पर ग्रहण बन रहा है। इस नीले जहर के सैलाब में आज बच्चे और युवा उतर-डूब रहे हैं। कोरोना काल में महामारी से इतर जो बड़ा संकट पैदा हुआ, वह ऑनलाइन पढ़ाई पर निर्भरता थी। अभिभावकों को मजबूरी में बच्चों को मोबाइल थमाने पड़े। बात पढ़ाई तक तो ठीक है, लेकिन अपरिपक्व बच्चों के हाथ में मोबाइल बंदर के हाथ में उस्तरे जैसा है। उन्हें यह नहीं पता कि जरा सी चूक उनके लिये कितनी घातक होती है। आज गुरुओं का वो जमाना भी नहीं रहा कि जो बच्चे के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता बनाएं। मां-बाप के पास समय नहीं है कि हरदम बच्चों की निगरानी कर सकें कि वे सोशल मीडिया पर क्या देख रहे हैं। कमोबेश किशोरों की यही स्थिति है कि अधकचरी जानकारियां उन्हें भ्रमित कर रही हैं।
सोशल मीडिया पर दूषित सामग्री
देश में सोशल मीडिया के तीव्र प्रसार व पश्चिमी संस्कृति के खुलेपन के अंधानुकरण के चलते अनियंत्रित यौन लिप्साएं उफान पर हैं। जाने-माने सोशल मीडिया प्लेट फॉर्मों पर ऐसे लाखों छोटे-छोटे वीडियो दिन-रात बह रहे हैं जिसमें हमारे परंपरागत सामाजिक रिश्तों की धज्जियां उड़ायी जाती हैं। गुरु-शिष्य, डॉक्टर-मरीज, देवर-भाभी आदि विश्वास के रिश्तों के अतिरंजित यौन संबंधों को तार्किक बनाने की कोशिश होती है। ऐसे में बाल व किशोर मन पर कितना घातक असर पड़ रहा होगा, अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। इसी नीले जहर की आंधी के चलते देश में यौन अपराधों की बाढ़ आई हुई है।
शोधों के परिणाम
नये शोध बता रहे हैं कि अनियंत्रित यौन व्यवहार से युवाओं में नपुंसकता व बांझपन के मामलों में अप्रत्याशित तेजी आई है। अपराध के पीछे अपनों का छल है। रिश्तों में विफलता में क्रूरतम घटनाएं हर भारतीय के अंतर्मन को उद्वेलित कर रही हैं। समाज विज्ञानियों को इन सुलगते सवालों का समाधान निकालना ही होगा। ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले हमारे ऋषि-मुनियों ने सदियों की साधना के बाद हमें योग का वरदान दिया। हमारे तन-मन के संयम और स्वस्थ जीवन के अमूल्य स्रोत योग में हमारे तमाम मनोकायिक रोगों का समाधान है। आज योग दिवस के बहाने पूरी दुनिया योगमय हो रही है तो योग-गंगा का स्रोत भारत क्यों उसके लाभ से वंचित रहे।
ब्रह्मचर्य आसन बेहद कारगर
योग-प्राणायाम हमें सकारात्मक जीवन के लिये तैयार करते हैं। लोगों को बताना होगा कि सोशल मीडिया के ज्यादा उपयोग से आंखों व शरीर के अन्य अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेजीनेस से सोचने की शक्ति कम होती है। वहीं मुद्राओं, ध्यान, प्राणायाम व आसन से हमारी कार्यक्षमता दुगनी होती है। शरीर के महत्वपूर्ण अंग लीवर, पेनक्रियाज व हृदय स्वस्थ होते हैं। तमाम हालिया शोधों से यह बात सामने आई है कि स्वच्छंद यौन व्यवहार से पूरी दुनिया में नपुंसकता बढ़ रही है। प्रजनन अंगों से जुड़े रोग बढ़ रहे हैं। जो यौन संबंधों में संयम की जरूरत रेखांकित करते हैं।
दरअसल, काम इच्छाओं पर नियंत्रण के लिये कई आसन बेहद उपयोगी हैं। जो शक्ति का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर ले जाता है। समय के अनुसार ब्रह्मचर्य, पश्चिमोत्तान, धनुर, चक्र व वज्र आसन करने से कामुकता नियंत्रण में मदद मिलती है। हर आसन को 21 सेकेंड तक श्वास के साथ करना है। कुंभक लगाने से लाभ ज्यादा मिलता है। इससे ऊर्जा का सकारात्मक रूपांतरण होता है।