डॉ. मधुसूदन शर्मा
ग्रीष्म ऋतु के गुण-धर्म को बताने वाला संस्कृत में एक श्लोक हैndash; ‘मयूखैर्जगतः स्नेहं ग्रीष्मे पेपीयते रविः’। अर्थातzwj;् ग्रीष्म ऋतु में सूरज अपनी प्रखर किरणों से संसार की स्निग्धता को कम कर देता है। इस ऋतु में न केवल मनुष्यों का बल्कि जगत में व्याप्त चराचर का जलीय अंश कम हो जाता है। भारत में ग्रीष्म ऋतु आदान काल का हिस्सा होती है। इस काल में पृथ्वी सूर्य के निकट होती है ,इसलिए यह काल सूखा और गर्म रहता है। चरक संहिता में वर्णन है-‘आदान दुर्बले देहे पक्ता भवति दुर्बले:’ यानी आदानकाल में जीवों का शरीर बहुत दुर्बल हो जाता है। इसलिए ग्रीष्म ऋतु में अनुकूल तथा हितकारी आहार-विहार का पालन करें, ताकि बीमारियों से बच सकें। जानिये ग्रीष्म की बीमारियों के बारे में।
लू लगना
लू लगना या हीट स्ट्रोक गर्मियों की आम समस्या है। जब कोई व्यक्ति उच्च तापमान में लंबे समय तक रहता है, तो वह हीट स्ट्रोक से पीड़ित हो जाता है। इसमें तेज बुखार, सिर दर्द, चक्कर आते हैं और कमजोरी आ जाती है। गंभीर स्थिति में बेहोशी भी हो सकती है, और आपातकाल चिकित्सा की जरूरत पड़ सकती है। हीट स्ट्रोक से बचने के लिए खाली पेट घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। धूप में छाते का इस्तेमाल जरूर करें। शरीर को लगातार हाइड्रेटेड रखने के लिए खूब पानी पिये। राष्ट्रीय खाद्य अकादमी एवं पोषण बोर्ड के अनुसार, सामान्य रूप से महिलाओं को 24 घंटों में 3 लीटर और पुरुषों को 4 लीटर पानी पीना चाहिए। जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं उन्हें सामान्य से अधिक पानी की जरूरत होती है। रसीले फल खाएं। वहीं पेय पदार्थों के रूप में नींबू पानी, आम पन्ना, छाछ, लस्सी, नारियल पानी, बेल का शर्बत लेते रहना चाहिए।
डिहाइड्रेशन
गर्मियों में अधिक पसीने की वजह से शरीर से पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स निकल जाते हैं, जिससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। इसमें प्यास अधिक लगना, पेशाब कम आना, पीले रंग का यूरीन आना, सिर दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है। यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए, तो यह जानलेवा भी हो सकता है। डिहाइड्रेशन के दौरान लगातार पानी पीते रहना चाहिए। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ कम या मध्यम किस्म के डिहाइड्रेशन में ओआरएस लेने का परामर्श देती हैं। निर्जलीकरण में दही में नमक और भुना जीरा डालकर सेवन करना भी बहुत लाभकारी होता है। छाछ और नारियल का पानी भी डिहाइड्रेशन में बहुत उपयोगी है।
फूड पॉइज़निंग
ग्रीष्म ऋतु की बीमारियों में एक और प्रमुख रोग है-फूड पॉइज़निंग या भोजन विषाक्तता। यह दूषित जल व खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण होती है। गर्म मौसम मे भोजन पर बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण होता है। जब इस दूषित भोजन या पानी का सेवन किया जाता है,तो बैक्टीरिया, वायरस आदि शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे पेट दर्द और उल्टी आदि होते हैं। फ़ूड पॉइज़निंग से बचने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें। ताजा घर का बना खाना खाएं। दूषित पानी का प्रयोग न करें।
सन बर्न
गर्मियों में देर तक धूप में रहना त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। सन बर्न ऐसी ही एक समस्या है जो सूरज की पराबैंगनी किरणों के अधिक संपर्क में आने से होती है। त्वचा में सूजन और दर्द, लालिमा, खुजली, प्रभावित अंग में स्पर्श से गर्माहट होना सन बर्न के लक्षण हैं। घमोरियां भी त्वचा की आम समस्या है जो पसीने के कारण छिद्र बंद होने के कारण होती है। इसमें त्वचा पर लाल दाने, खुजली होती है। इन समस्याओं से बचने के लिए तेज धूप में बाहर जाने से बचना चाहिए। गर्मियों में मीजल्स, चिकन पॉक्स, मम्प्स, पीलिया तथा जल जनित रोग डायरिया, डिसेंट्री, कॉलरा आदि भी बहुत होते हैं, जिनमें डाक्टरी सलाह की जरूरत होती है।
ग्रीष्म ऋतु चर्या
स्वस्थ रहने के लिए, आहार, विहार ऋतु के अनुसार ही होना चाहिए। चरक संहिता के मुताबिक, ग्रीष्म ऋतु में घी-दूध और चावल का सेवन हितकारी होता है। नमकीन, अम्लीय, कड़वे और चटपटा भोजन नहीं लेना चाहिए। कठोर श्रम और व्यायाम से बचें। आचार्य चरक ग्रीष्म ऋतु में हितकारी आहार पर लिखते हैं- ‘स्वादु शीतं द्रवं स्निग्धमन्नपानं तदा हितमzwj;्।’अर्थात ग्रीष्म ऋतु के प्रभाव से बचने के लिए मनुष्य को स्वादिष्ट शीतल पेय पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए और वसा युक्त भोजन का सेवन हितकारी होता है। गर्मियों के दिनों में भोजन कम मात्रा में तथा ताजा, सुपाच्य और गर्म लेना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में शीतल पेय पदार्थ लाभकारी होते हैं। चाय, सीमित मात्रा में लेनी चाहिए। प्रातः काल नदी या तालाब किनारे घूमना चाहिए।
जहां ग्रीष्म ऋतु असुविधा जनक है, वहीं इसके कुछ लाभ भी हैं। अगर गर्मी अच्छी पड़ेगी तो बारिश भी अच्छी होगी। तेज गर्मी में वातावरण में व्याप्त हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।