मनीष कुमार चौधरी
वह शेयर बाजार का मारा था। इसलिए बेचारा था। शेयर बाजार में पिटे हुए आदमी और किसी भी जुआरी की स्थिति लगभग समान होती है। दोनों यही सोचते हैं कि बस अब जीते कि अब जीते। जीतते तो वे क्या हैं, जो जीता होता है उसे भी गंवा डालते हैं। शेयर बाजार में कूदे हुए आदमी की तुलना आप चाहें तो भेड़ से कर सकते हैं। एक भेड़ जिधर रास्ता नापती है, एक के बाद एक सारी भेड़ें उस रास्ते को नापने लगती हैं। जब आदमी इस बाजार में घुसता है तो उस सांड की तरह हावभाव दिखाता है जो स्टॉक एक्सचेंज की बिल्डिंग के बाहर लगा रहता है। लेकिन कुछ दिन बीतते-बीतते वह सांड उसके लिए मिमियाती बकरी में बदल जाता है और वह स्वयं को भी उसी स्थिति में पाता है। शेयर मार्केट में हर कोई ‘झुनझुनवाला’ बनना चाहता है, पर मार्केट अक्सर उसको झुनझुना थमा देता है और वह ‘झुनझुने वाला’ नजर आने लगता है।
वैसे भी सेंसेक्स नेताओं के ईमान की तरह गया-गुजरा हो गया है, उसके स्वभाव का पता नहीं चलता कि वह कितना गिरेगा। सेंसेक्स चढ़ता है तो आदमी सोचता है कि हाय उसने शेयरों में पैसा इन्वेस्ट क्यों नहीं किया। थोड़े दिन होते-होते जब इंडेक्स नीचे आ जाता है तो वही आदमी सोचता है, अच्छा हुआ भैये, जो शेयरों में पैसा नहीं लगाया। लेकिन सेंसेक्स का क्या है। वह फिर चढ़ जाता है। अब आदमी परेशान कि मुए उस वक्त बाजार में कूद लिए होते तो आज अपने भी वारे-न्यारे हो जाते। सेंसेक्स ऊपर-नीचे होता रहता है और आदमी का दिमाग भी। इसी कशमकश के बीच जो शेयर बाजार में कूदता है उसे इस बाजार के मारे या पिटे हुए आदमी का दर्जा दिया जाता है। वो उन तमाम ऊंची कंपनियों के शेयरों की बात करेंगे कि उसका शेयर कहां से कहां पहुंच गया और उसे लेने वाले लोग करोड़पति-अरबपति बन गए, लेकिन उसके खुद के शेयर की स्थिति क्या है, वह इस पर बात नहीं करेगा। दरअसल उसके शेयर के दाम इतने नीचे आ गए होते हैं कि किसी को बताने का मतलब है, खुद की किरकिरी कराना।
सदियों से कहा जाता रहा है कि लालच बुरी बला है, पर इस बाजार में घुस आए आदमी को लालच ही सबसे ज्यादा मारता है। ‘बेचूं कि न बेचूं…’ इन चार छुटके शब्दों में शेयर बाजार का सारा खेल हो जाता है। दो-चार प्रतिशत ही इन शब्दों की भूलभुलैया से बच पाते हैं, बाकी की स्थिति धोबी के कुत्ते की तरह हो जाती है। वे जब तक यह समझें कि तेजड़िए और मंदड़िए क्या बला है, खुद को लुटापिटा पाते हैं। बहरहाल, ऐसे मौके पर मुझे स्वर्गीय कवि प्रदीप का एक गीत याद आ रहा है, ‘हमने जग की अजब तस्वीर देखी…. इक हंसता है दस रोते हैं…।’ शेयर बाजार में यह आंकड़ा बदल जाता है। वहां एक हंसता है, सौ रोते हैं।