संदीप भारद्वाज ‘शांत’
झज्जर शहर में बाबा प्रसाद गिरी जी महाराज की सदियों पुरानी सिद्ध पीठ विद्यमान है। यह सिद्ध पीठ कभी निर्जन जंगल में होती थी। मान्यता है कि जिस भी भक्तजन ने यहां बाबा की निष्काम सेवा की है, उसकी बाबा ने रक्षा की है। साधु का भूषण सर्वथा त्याग रहा है जिसकी महिमा शास्त्रों ने अनेक रूपों में वर्णित की है। जिसने भी इस साधना को अपनाया है उसी की तपस्या सफल हुई है।
लगभग 300 वर्षों से यहां कथा प्रचलित है कि बिमला देवी नामक महिला नित्य कुटिया में आकर बाबा की सेवा करती और साफ-सफाई की व्यवस्था करती थी। उस समय गांव वालों की संकीर्ण सोच के चलते उसे बहुत कुछ सुनना पड़ता था। लेकिन वह अपने सच्चे भाव से बाबा की सेवा करती रही। वह अक्सर इन बातों का जिक्र बाबा से करती तो बाबा उन्हें यही समझाते कि पुत्री तू अपने सच्चे मन से यहां सेवा कर रही है तुझे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।
बिमला का पति जो सेना में था, वह समय-समय पर अपने घर आता रहता था। एक बार उसका पति बीमारी से ग्रसित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। गांव वालों ने बिमला पर आरोप लगाया कि उसने उस बाबा के साथ मिलकर तंत्र विद्या से अपने पति को मरवा दिया है। यह सब बातें सुनकर उसका मन बड़ा दुखी हुआ। किंवदंती है कि वह रोती-बिलखती बाबा प्रसाद गिरी जी के पास कुटिया में गई और सारी आपबीती सुनाई। उस अबला की सारी बात सुनकर बाबा प्रसाद गिरी जी ने उसे कहा, पुत्री जब तेरे पति की अर्थी को श्मशान लेकर जाया जाए तो उसकी अर्थी को एक बार मेरी कुटिया पर जरूर लेकर आना। बिमला ने घर जाकर अपने घर वालों से प्रार्थना की कि एक बार इसे बाबा की कुटिया के सामने से जरूर लेकर जाएं। कुछ समझदार लोगों ने उसकी इस बात पर विचार करते हुए उसके पति की अर्थी को बाबा की कुटिया के पास ले गए।
जनश्रुति है कि बाबा ने कहा हे प्रभु! आप सर्वज्ञ हैं, सर्वशक्तिमान हैं घट-घट के पट-पट की जानत : भले-बुरे की पीर पछानत, आपके सिवाय मेरा कौन? बाबा प्रसाद गिरि जी अर्थी के पास आए और अपने कमंडल से गंगा जल की कुछ बूंदें उस मृत शरीर पर डाली और उसका हाथ पकड़ कर कहने लगे, ‘अरे! खड़ा हो तू क्यों सो रहा है? यहां इस अबला पर लोग तरह-तरह के लांछन लगा रहे हैं। यह तेरे सोने का समय नहीं है।’ इतना कहकर बाबा ने वही समाधि ले ली और उस मृत मनुष्य को जीवनदान दे दिया। यह सब देख कर सभी गांव वालों ने बिमला से क्षमा-याचना की और बाबा के जयकारों से सारा गांव गूंज उठा।
उस वक्त से मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से बाबा प्रसाद गिरी जी की समाधि पर अरदास लेकर आता है बाबा उसकी सभी मन्नतों को पूर्ण करते हैं। यहां हर वर्ष होली पर फाग वाले दिन श्रद्धालु ढोल-नगाड़ों के साथ बाबा पर पंखें चढ़ाने का त्योहार मनाते हैं। बाबा की समाधि के पास बाबा का धूना और अखंड ज्योत आठों पहर जलती रहती है। मान्यता है कि बाबाजी के धूने से भभूति लगाने मात्र से ही लोगों के कष्टों का निवारण हो जाता है। यहां समाधि के पास चरणामृत कुंड भी बनाया हुआ है। लोक मान्यता है कि इस चरणामृत के धारण करने से भक्तजनों की कठिन से कठिन बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।
बाबा की सेवा में लगे सिद्ध पीठ के महंत बताते हैं कि बाबा की असीम कृपा यहां आने वाले सभी भक्तों पर बनी रहती है। यहां जो भी भक्तजन सच्चे मन से बाबा की समाधि पर अरदास लगाते हैं उनका निश्चय ही बाबा भला करते हैं। यहां हर वर्ष होली के अवसर पर कई दिनों तक दूर-दूर से साधु-संतों का आवागमन रहता है। वे बाबा की महिमा में सत्संग करते हैं।