भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह अब दोतरफ़ा खेल खेलने में लगे हैं। वे सत्तारूढ़ भाजपा को धमकी भी दे रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ़ों के पुल भी बांध रहे हैं। उन्होंने रविवार को गोंडा में एक जनसभा कर अपनी ताक़त दिखाते हुए कहा कि अगला लोकसभा का चुनाव वे लड़ेंगे। यद्यपि उनका इतिहास भी बताता है कि बृजभूषण शरण सिंह पाला बदलने में माहिर हैं और अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय भी हैं। भाजपा से पहली बार वे गोंडा से 1991 में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के आनंद सिंह को हरा कर जीते थे। प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार थी और अयोध्या में विवादित ढांचा जब गिराया गया तब बृजभूषण शरण सिंह कारसेवकों की अगुआई कर रहे थे। उन्होंने खुल्लमखुल्ला यह स्वीकार भी किया कि ढांचा गिराने में उनकी भूमिका रही।
वर्ष 2008 में पार्टी (भाजपा) व्हिप के बावजूद केंद्र की मनमोहन सरकार बचाने के लिए उन्होंने पाला बदल लिया, वे समाजवादी पार्टी में आ गए और 2009 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी की टिकट पर जीते। कहा जाता है कि उन पर आरोप था, कि डॉन दाऊद ख़ान से उनके करीबी संबंध थे और इसकी जांच चल रही थी इसलिए अपने बचाव के लिए उन्होंने मनमोहन सरकार का साथ दिया। उनकी पूरी छवि एक बाहुबली नेता की रही है। भाजपा विधायक घनश्याम शुक्ल हत्याकांड में उन पर सीधे-सीधे अंगुली उठी थी। किंतु वे साफ़ बच निकले। पर इसी वर्ष जनवरी से अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवानों ने जिस तरह से उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया, उससे वे अवश्य घबराये हुए हैं। उन पर महिला पहलवानों से यौन दुर्व्यवहार के भी आरोप हैं। हालांकि बृजभूषण शरण सिंह अपने क्षेत्र में पहलवान के रूप में भी जाने जाते हैं और छात्र जीवन में वे अपने कॉलेज साकेत महाविद्यालय के कुश्ती संघ के भी अध्यक्ष थे। जब भी कोई कुश्ती प्रतियोगिता होती है, बृजभूषण वहां पहुंचते ज़रूर हैं।
लेकिन अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पहलवानों द्वारा अनवरत धरना दिए जाने से वे परेशान हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उनके विरुद्ध दिल्ली पुलिस ने रिपोर्ट लिखी थी। वैसे बेहतर तो यह होता कि महिला पहलवानों ने जब उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था, तब ही वे इस्तीफ़ा देकर अलग हो जाते और कहते, कि कर लो जांच। लेकिन जब सरकार ने कुश्ती संघ को ही भंग किया, तब उन्हें खुद हटना पड़ा। अब वे शायराना अंदाज़ में बोल रहे हैं, कि ‘ये मिला मुझे मोहब्बत का सिला, बेवफ़ा कह कर मेरा नाम लिया जाता है!’ यही नहीं जब वे रामचरित मानस की यह चौपाई बोलते हैं कि ‘हुइ है सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावहिं साखा’, तब यह भी लगता है कि इस बाहुबली सांसद को भावी ख़तरा दिख रहा है। उनका आत्मविश्वास अब डोलने लगा है। रविवार को गोंडा की पब्लिक रैली में जब उन्होंने कहा, कि ‘इसको रुसवाई कहें या शोहरत अपनी, दबे होंठों से नाम लिया जाता है।’ तब लगा कि बृजभूषण शरण सिंह के ऊपर दबाव इस क़दर बढ़ गया है कि वे अपने ऊपर लगे आरोपों को भी अपनी गरिमा समझ रहे हैं।
पिछले 12 वर्ष से बृजभूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जैसे नामी पहलवानों की मांग के बावजूद बृजभूषण से इस्तीफ़ा नहीं लिया गया। यही नहीं, एफआईआर दर्ज होने के बाद भी उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया गया था। बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एक नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों ने दो दर्जन एफआईआर कराई थीं। बृजभूषण शरण सिंह को कुश्ती महासंघ से तब हटाया गया जब यूपी निकाय चुनाव संपन्न हो गए और उनका नतीजा भी आ गया। कुश्ती महासंघ की कार्यकारिणी भंग कर 45 दिनों के भीतर भारतीय कुश्ती महासंघ अपनी नई कार्यकारिणी का गठन करेगा और तब ही नया अध्यक्ष चुना जाएगा। इन सबसे अब बृजभूषण शरण सिंह थोड़ा घबराये और इसीलिए रविवार को उन्होंने रैली की। रैली में आयी भीड़ से यह तो लग ही गया कि अभी उनकी लोकप्रियता बरकरार है।
बृजभूषण शरण सिंह की उत्तर प्रदेश के गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या और बहराइच में यह लोकप्रियता ही उन्हें इतनी ताक़त देती है जिसके बूते वे इतने आरोपों से घिरे होने के बावजूद अपराजेय हैं। ख़ुद भाजपा के सर्वाधिक ताकतवर और लोकप्रिय नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी के सामने घनश्याम शुक्ला (तब वे पूर्व विधायक थे) की हत्या का संदर्भ आने पर बृजभूषण साफ़ मुकर गये। दरअसल, अपने क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता की वजह उनका अपने सहयोगियों के लिए कुछ भी कर डालना रही है। यही वजह है कि किसी सरकार में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उन पर कोई कार्रवाई हो सके। केंद्र और उत्तर प्रदेश में तमाम सरकारें आयीं और गईं लेकिन बृजभूषण यथावत रहे। शायद यही कारण है कि उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
लेकिन यह पहली बार हुआ है, कि बृजभूषण स्वयं को असहाय महसूस कर रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे पहलवानों के धरने से डर गए। क्योंकि भले धरना देने वाले पहलवान अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं या ओलम्पिक खेलों से पदक ला चुके हैं, बृजभूषण शरण सिंह हर बात का तुर्की-ब-तुर्की जवाब देते रहे। उन्होंने इस पूरे कांड को हरियाणा बनाम उत्तर प्रदेश बना दिया। जबकि दोनों जगह प्रदेश सरकारें भाजपा की हैं। उन्हें दरअसल भय सताया जब सुप्रीम कोर्ट ने दख़ल दिया और केंद्र सरकार ने उन्हें हटाने के लिए संपूर्ण कुश्ती महासंघ की कार्यकारिणी ही भंग कर दी। पिछले 12 साल से वे जिस पद पर डटे थे, वह अचानक से उनसे छिन गया। इसलिए उन्हें भय नरेंद्र मोदी और अमित शाह का है। उनको यह अहसास हो गया है, कि ये दोनों नेता अपने इरादों के पक्के हैं, और अगर आरोप पुख़्ता पाए गये तो छोड़ेंगे नहीं।
बृजभूषण शरण सिंह ने रविवार की अपनी पब्लिक रैली में मोदी और शाह की जमकर तारीफ़ की थी। अपनी लोकप्रियता का दांव तो चला, किंतु उन्हें मालूम है, कि गोट दबी है। पहलवानों द्वारा लगाए गये आरोपों की जांच शुरू हुई तो आंच दूर तक जाएगी। दूसरे यौन दुराचार के मामले ऐसे होते हैं, जिनसे किसी भी नेता की पब्लिक इमेज ध्वस्त हो जाती है। फिर वह किसी जिताऊ पार्टी की टिकट पर भले चुनाव जीत जाए, बिना पार्टी के जीतना असंभव होता है। यह भारतीय मतदाता का मिज़ाज है। इसलिए नेता कोशिश करता है, कि यौन दुराचार जैसा कोई क्षुद्र आरोप उस पर न लगे। हत्या, लूट जैसे आरोपों की जब जांच होगी तब फ़ैसला आएगा लेकिन यौन दुराचार या छेड़छाड़ जैसे मामलों में पब्लिक सेंसेटिव हो जाती है। ऐसे नेताओं को तो सरकार चाहे भी तो नहीं बचा सकती।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुप्रसिद्ध पत्रकार एमजे अकबर, जो उस समय विदेश राज्यमंत्री थे, ‘मी टू’ के मामले में फंसे थे तब उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था। जबकि वे मोदी सरकार के काबिल मंत्रियों में से थे। और ‘मी टू’ का केस भी वर्षों पुराना था। यह भी यौन दुराचरण का ही मामला था। आरोप की पुष्टि हुई या नहीं लेकिन मंत्री जी को कुर्सी गंवानी पड़ी। इसी सब से घबरा कर बृजभूषण शरण सिंह ने रविवार को गोंडा में जनसभा की, बहाना था मोदी सरकार के नौ वर्ष पूरे होने की ख़ुशी में जलसा हुआ। परंतु जिस तरह से बृजभूषण ने भाषण दिया उससे यह तो लग ही गया कि वे वफ़ादारी और बग़ावत दोनों के तेवर दिखा रहे हैं। वे इस तरह से घिरे हैं, कि एक तरफ़ तो वे सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं और दूसरी तरफ़ चापलूसी में कमी नहीं। पर वे भूल जाते हैं, कि पहलवान पूरी ताक़त से मोर्चा खोले हैं। उनके साथ हरियाणा और वेस्ट उत्तर प्रदेश के किसान भी आते जा रहे हैं। सरकार यह क़तई नहीं चाहेगी कि दिल्ली के आसपास की जनता का क्रोध वह एक सांसद को बचाने के लिए पनपने दे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।