अरविंद कुमार सिंह
हाल ही में ओडिशा के बालासोर में हुए भयानक रेल हादसे ने पूरे देश को सन्न कर दिया। एक मालगाड़ी और दो तेज रफ्तार एक्सप्रेस सवारी गाडियां बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस और शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस इसका शिकार बनीं। हादसे में 288 से अधिक लोगों की मौत हो गयी, जबकि 1100 से अधिक लोग घाय़ल हुए। जो इस दुनिया में नहीं हैं, उनके परिजनों को जीवन भर तो ये हादसा याद रहेगा, लेकिन जो लोग विकलांग बन गए हैं, उनका जीवन आखिर कैसे कटेगा? क्या मुआवजों से उनकी कमी पूरी हो जाएगी।
राहत और बचाव अभियान
आम तौर पर भारतीय रेल की अधिकतर भयानकतम दुर्घटनाएं देर रात में हुई हैं। इस कारण राहत और आपदा प्रबंधन आदि में देरी के कारण बहुत सी ऐसी मौतें हुईं, जिनको रोका जा सकता था। लेकिन ताजा दुर्घटना सांझ ढलने के समय हुई, और इस कारण युद्ध स्तर पर राहत और बचाव अभियान चल सका। अन्य दुर्घटनाओं की तरह देवदूत की तरह सबसे पहले स्थानीय ग्रामीण लोग ही पहुंचे। फिर ओडिशा सरकार और रेलवे के अधिकारी और आपदा तंत्र के लोग पहुंचे। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने यथासंभव सारी ताकत झोंक दी। इस नाते रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जब अगले दिन भोर में पहुंचे तब तक स्थिति काबू में आ चुकी थी। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे और काम में तेजी आयी। इस घटना को लेकर बहुत सी बातें उठ रही हैं लेकिन विशेषज्ञ इसमें रेलवे की लापरवाही और सिगनलिंग प्रणाली की खामी मानते हैं। इसकी जांच रेल संरक्षा आयोग ने आरंभ की पर इसी बीच अचानक रेल मंत्री ने सीबीआई से जांच की सिफारिश कर नया मोड़ दे दिया है।
चर्चा और दावे
भारतीय रेल इन दिनों लगातार चर्चा में है। स्वाभाविक है कि रेलवे विद्युतीकरण से लेकर इसकी चमक-दमक और वंदे भारत से लेकर तमाम मोर्चों पर इसकी सफलता के प्रचार की योजना फिलहाल धरी रह गयी। जिस दिन यह घटना घटी उसी दिन दिल्ली में रेलमंत्री ने सुरक्षा संरक्षा के मामलों में मिली सफलताओं के साथ हाई स्पीड पर काफी कुछ दावे किए थे। बुलेट ट्रेन परियोजना के साथ मिशन रफ्तार की बात कही थी और यह भी कहा था कि इस महीने के अंत तक देश के हर राज्य से होकर वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन गुजरने लगेगी।
रेलमंत्रियों तक पहुंची आंच
इस घटना के पहले रेलमंत्री सुरेश प्रभु को 2017 में रेल दुर्घटना के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था। उनके कार्यकाल में पांच दिन में दो बड़ी घटनाएं घटी। पीयूष गोयल इसके बाद रेल मंत्री बने जो 7 जुलाई 2021 तक इस पद पर रहे। उनके मंत्री काल में काफी समय रेलगाड़ियां कोरोना के नाते बंद ही रहीं। अश्विनी वैष्णव 2021 से रेलवे को संभाल रहे हैं।
बात रफ्तार की
आज 21वीं सदी में भारतीय रेल की तस्वीर बदल चुकी है। भारतीय रेलवे 13,523 यात्री और 9146 यात्री गाड़ियों का संचालन रोज करता है। इस समय रेलवे ने स्वर्णिम चतुर्भुज और अन्य को मिला कर करीब 8404 किमी खंडों पर गति बढ़ा कर 130 किमी प्रति घंटा की है। दिल्ली- मुंबई और दिल्ली- हावड़ा खंड पर औसत गति 160 तक बढ़ाने का काम आरंभ हो गया है। फिर भी सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि 2008 से 2019 के दौरान ढाई लाख करोड़ रुपए के निवेश के बाद भी एक दशक में मेल एक्सप्रेस की औसत रफ्तार नहीं बढ़ी है। अभी यात्री गाड़ियों की औसत रफ्तार 50.6 किमी और मालगाड़ियों की 24 किमी प्रति घंटा है।
आर्थिक समीक्षा 2021-22 के मुताबिक भारतीय रेल 68102 किमी रेल नेटवर्क के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। लेकिन जमीनी हकीकत चिंताजनक इस नाते है क्योंकि इस रेल नेटवर्क में उच्च यातायात घनत्व वाले सात मार्गों और 11 अति व्यस्त मार्गों की दशा बहुत खराब है। इसमें पहली श्रेणी यानि हाई डेंसिटी नेटवर्क भारतीय रेल नेटवर्क का करीब 16 प्रतिशत हिस्सा और 11 हजार किमी है। लेकिन यह करीब 41 प्रतिशत माल परिवहन करता है। वहीं उच्च 11 अति व्यस्त मार्गों जो 24230 किमी और भारतीय रेल नेटवर्क का करीब 35 प्रतिशत बनता है वह कुल 40 प्रतिशत यात्री परिवहन करता है। ये दोनों भारतीय रेल नेटवर्क 50 प्रतिशत या 34,214 किमी बनते हैं जो रेलवे के परिवहन के 80 प्रतिशत ढुलाई करते हैं। लेकिन इनका 100 प्रतिशत से अधिक क्षमता उपयोग हो रहा है। भारतीय रेल का 25 प्रतिशत नेटवर्क 100 से 150 प्रतिशत क्षमता उपयोग कर रहा है।
संरक्षा और विस्तार कार्य
इस संदर्भ में देखें तो सुरक्षा और संरक्षा पर काम धीमी गति से हो रहे हैं और क्षमता विस्तार की रफ्तार भी धीमी है। हर साल करीब 200 सिगनल ओवरएज होते हैं और 100 बदले जाते हैं। हर साल 4500 किमी से 5000 किमी रेलपथ खराब होकर बदले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन उनके बदलने का काम धीमा है। एक अप्रैल 2022 की स्थिति में रेलपथ नवीनीकरण के लिए लंबित काम 9090 किलोमीटर था, जिस पर 54.402 करोड़ रुपए की लागत आंकी गयी है।
तकनीक के दौर में कमजोर रखरखाव
रेलपथ का अनुरक्षण एक सदी पहले तक केवल हाथ से होता था। बाद में यांत्रिक रूप से बिछाने औऱ उसके अनुरक्षण के लिए 1960 के दशक के आरंभ से रेलपथ मशीनों का प्रयोग आरंभ हो गया। अधिक लदान, ज्यादा गति, फ्लैट टायर और जंग लगने जैसे कारणों से पटरियां प्रभावित होती हैं। किसी भी रेल पटरी का औसत जीवनकाल 20 से 40 साल होता है। यातायात घनत्व भी इसे प्रभावित करता है। आज फूलप्रूफ तकनीक के इस दौर में ओडिशा में जैसा रेल हादसा हुआ है वह कई सवाल खड़े करता है। रेलगाड़ियों की टक्कर, पटरी से उतरने और समपार दुर्घटनाओं को रोकना था जो भारतीय रेल की ज्यादातर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
लेकिन यह सवाल तब और गंभीर हो जाता है जब एक लाख करोड़ रुपए का समर्पित राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बना हुआ है। इससे यातायात सुविधाएं, चल स्टाक, समपार, रेल पथ नवीनीकरण, पुल और सिगनलिंग के काम हो रहे हैं। सालाना 20,000 करोड़ व्यय भी रेल मंत्रालय नहीं कर पाया है।
खाली पड़े पदों का भी असर
आज के दौर में केवल तकनीक से सब कुछ हल नहीं होगा बल्कि मानव संसाधन भी एक अहम पक्ष है। लेकिन रेलवे में 3.20 लाख पद खाली पड़े हैं और सबसे जरूरी संरक्षा सुरक्षा श्रेणी में बड़ी संख्या में पद खाली हैं। रेलवे में संरक्षा श्रेणी मे कुल पदों की संख्या 7.46 लाख है। इसमें से 1.22 लाख पद रिक्त पड़े हैं और 6.23 लाख कर्मचारी भारी दबाव में काम कर रहे हैं। इसमें से लोको पायलटों की स्वीकृत संख्या 95931 की तुलना में 18,633 रिक्तियां हैं। लोको पायलटों को 10 घंटे से अधिक की ड्यूटी देनी पड़ रही है।
कवच तकनीक से युक्त परिचालन
इस दुर्घटना में एक और अहम तथ्य कवच स्वचालित गाड़ी सुरक्षा प्रणाली उभरी है। साल 2022 में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐलान किया था कि कवच तकनीक से रेलवे यात्री ट्रेनों का परिचालन सुरक्षित बनाएगी। यूपीए सरकार के दौरान 2010-11 में स्वदेशी टक्कर रोधी उपकरण एसीडी पूर्वोत्तर सीमा रेलवे में पायलट परियोजना के तहत 1736 किमी लाइन और 543 रेल इंजनों में लगाने का काम आरंभ हुआ था। फिर नया एसीडी-2 वर्जन लगाने का फैसला हुआ और तीन रेलवे जोनों में 8486 किमी के लिए इन कामों को स्वीकृति दे दी गयी। पर 4 मार्च 2022 को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने नए कवच के फायदे गिनाते कहा था कि ट्रेनों की रफ्तार चाहे कितनी हो लेकिन इस सिस्टम की वजह से ट्रेनें आपस में नहीं टकराएंगी। लेकिन देश के कुल 13,215 बिजली इंजनों में से 65 ही कवच से लैस हैं।
भारतीय रेल रोज आस्ट्रेलिया की आबादी जितने लोगों को गंतव्य तक पहुंचाती है। माल ढुलाई में भी एक दशक पहले अमेरिका, चीन और रूस के साथ एक बिलियन टन के विशिष्ट क्लब में शामिल हो चुकी है। लेकिन इसकी हकीकत सबके सामने हैं। बीते एक दशक में तमाम दावे और प्रयोग हुए। चंद सालों में भारतीय रेल बुलेट युग में भी प्रवेश कर जाएगी। लेकिन ऐसा लगता है कि पुरानी रेल दुर्घटनाओं से सबक न लेते हुए रेलवे संरक्षा, सुरक्षा और आधुनिकीकरण पर उस तरह ध्यान नहीं दे रही है, जिसकी दरकार है।
वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल