एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा, ‘गुरुदेव, मैं आपके बताए हुए मार्ग पर चलता हूं। सदाचारपूर्ण जीवन जीता हूं तथा ईश्वर का ध्यान करता हूं, किंतु कभी-कभार गुस्से या मजाक में किसी से कुछ कह देता हूं तो लोग बुरा मान जाते हैं।’ संत ने कहा, ‘वत्स, एक अकेले अवगुण की बदली 99 सद्गुणों के सूरज को ढक लेती है। नीबू की एक बूंद सारा दूध फाड़ देती है। इसी तरह मनुष्य की वाणी भी सब गड़बड़ करा देती है। द्रौपदी ने व्यंग्य में दुर्योधन को अंधे की औलाद कह दिया था। परिणामतः चीरहरण, वनगमन और महाभारत के कष्ट झेलने पड़े थे। अतः वाणी पर संयम और उसमें मधुरता अवश्य होनी चाहिए अन्यथा शत्रु तो बढ़ेंगे ही।’ शिष्य समझ गया और अभिभूत होकर गुरु के समक्ष नतमस्तक हो गया। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी