स्वामी विवेकानंद को युवा समाज से काफी आशा रहती थी। युवाओं के साथ वार्ता, संवाद, गोष्ठी आदि के लिए वे सदैव तत्पर रहे। युवा वर्ग में हताशा तथा अवसाद पर उनकी एक बार सार्थक चर्चा हो रही थी। एक युवक ने सवाल उठाया, ‘माननीय, किसी धूर्त तथा नीच मानसिकता वाले आदमी से तो प्रेम का सवाल ही नहीं। उसे तो दूध की मक्खी जैसा निकाल बाहर फेंकना चाहिए।’ यह सुनते ही स्वामी विवेकानंद सभी को एक बगीचे मे ले गये और बताया। ‘ये देखो ये हरे वृक्ष सबको बराबर छाया और शीतलता दे रहे हैं। मानव या अमानव इनको सबसे समान स्नेह है। बस ऐसे ही बनो। सबके साथ समान। यही सहजता दिव्यता तक ले जायेगी।’ प्रस्तुति : पूनम पांडे