दीप्ति अंगरीश
हम बच्चों को कहते हैं ये नहीं करो, वो नहीं करो, मोबाइल को छोड़ दो। लेकिन खुद कितना अपनाते हैं, बच्चों को देने वाली सीख? शायद उन हिदायतों में से एक भी नहीं। आपका नहीं बल्कि अधिकांश हर बड़े का यही हाल है। घर का काम हो या ऑफिस का, हर पल गैजेट्स से घिरे रहते हैं। सोशल मीडिया में तो जैसे आपकी जान बसी हो। फिर बच्चों को बोलते हैं कि मोबाइल छोड़ दो। लैपटॉप से दूर रहो। आंखें खराब हो जाएंगी। बच्चों को सोशल मीडिया के हर प्लैटफॉर्म से आप ने ही तो दोस्ती करवाई है। अपनी सहूलियत के लिए उसके हाथों में मोबाइल थमाया है, जब आपको कुछ और काम करना होना था। असल में, बच्चे तो आपसे ही सीखते हैं। आज से ही खुद और पूरे परिवार को हर दिन कम से कम दो घंटे डिजिटल डिटॉक्स डाइट दें। आपके और परिवार के लिए ये बेहद जरूरी है। इसे आप रिलेशनशिप का बूस्टर भी मान सकते हैं।
क्यों नुकसानदायक है स्क्रीन
वैसे तो हर गैजेट के भरपूर फायदे हैं, लेकिन इसकी अति आप और आपके परिवार के लिए घातक है। अब बताएं जब आप हर पल टकटकी लगाकर फोन देखते रहेंगे, तो कहां मिलेगा अपनी पहचान, अपने सपने और ज्ञान को बढ़ाने का समय। आपकी इन आदतों से आपके अपने भी दूर होते जाएंगे। फिर डिजिटल ही ढूंढ़िएगा परिवार वालों, बच्चों और दोस्तों को। आपकी इन आदतों से कब आपको बीमारियां लग जाएंगी, आपको पता भी नहीं चलेगा। और तो और, इन गैजेट्स से निकलने वाली नीली रोशनी त्वचा से बहुत कुछ चुरा लेगी। सब नोटिफिकेशन्स बंद कर दें। अगली बार बच्चों को खाने के साथ यूट्यूब देखने को नहीं कहना। वो देखें तो प्यार से मोबाइल छुपाकर उसके साथ समय बिताना। डिजिटल गैजेट्स बुरे नहीं हैं। बस रोज कम से कम दो घंटे इनके बिना रहें। फिर देखें कैसे परिवार आपके पास आएगा।
स्क्रीन टाइम हो फिक्स
सबसे पहले तो देखें कि आप और घर के लोग दिन के कितने घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं। आप खुशियों को महसूस करना और जीना चाहते हैं, तो परिवार को रोज़ाना डिजिटल डाइट से फ्री करें। इसके लिए बस इतना करें, जब आप सब शाम को घर पर हों, तो ये गैजेट्स बंद कर दें। इसका मतलब यह नहीं कि वर्चुअल गेम्ख खेलें या गाना सुनें। अब सब खुलकर बातें करें। अपने शौक को समय दें। किताबें पढ़ें। दोस्तों से गपियाएं। अंताक्षरी खेलें। सब मिलकर डिनर बनाएं। साथ में घूमने जाएं। पार्क में जाएं। वो सब काम करें जो फोन के चक्कर में छूटते जा रहे थे।
इरादा कर लें पक्का
सच तो यह है कि इस फोन ने अपनों को दूर ही कर दिया है। इस डिजिटल डिटॉक्स डाइट के लिए अनुशासन और दृढ़ संकल्प चाहिए। इसके लिए सिर्फ बच्चों को डांटने से काम नहीं चलेगा। दरअसल अच्छे परिणाम तभी आएंगे जब शाम को सब परिजन घर आ जाएं तो टीवी और सारे गैजेट्स बंद करें। फोन चार्जिंग पहले कर लें। अन्यथा जहां आप सब एक साथ बैठे हैं वहां से दूसरे कमरे में चार्जिंग करें। सामने देखेंगे, तो फोन को हाथ लगा लेंगे। फिर फेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम व अन्य ऐप्स में ही उलझे रहेंगे। कुछ समय के लिए गैजेट्स बंद करने में शुरू-शुरू में मुश्किल आएगी, लेकिन जब परिणाम आएंगे तो आपको अच्छा लगेगा।
कम होती याददाश्त पर चौंकाता शोध
मानव इतिहास में सबसे जुड़े हुए युग के दौरान जीवन में कई चीजें सकारात्मक तो हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि परिवार के सदस्य केवल एक फेसटाइम सत्र दूर हैं। आपके दिमाग में आने वाले लगभग किसी भी प्रश्न का उत्तर आपकी उंगलियों पर है। लेकिन बहुत अधिक तकनीक – चाहे वह स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, या अन्य डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताया गया समय हो – इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं। आजकल के बच्चों में स्मरण शक्ति कम हो रही है, क्योंकि वो डिजिटल गैजेट्स और गूगल जैसे सर्च इंजन पर अधिक निर्भर हो गए हैं। डायलॉग्स इन क्लिनिकल न्यूरोसाइंस में जून 2020 में प्रकाशित एक समीक्षा में कहा गया है कि लगातार प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़े हुए ध्यान-कमी के लक्षणों, बिगड़ी हुई भावनात्मक और सामाजिक बुद्धिमत्ता, प्रौद्योगिकी की लत, सामाजिक अलगाव, बिगड़ा हुआ मस्तिष्क विकास और कुछ मामलों में बाधित नींद से जुड़ा हुआ है।