डॉ. मधुसूदन शर्मा
गुफाओं का प्राचीन इतिहास मानव सभ्यता के शुरुआती दौर से जुड़ा हुआ है। गुफाएं मानव जाति के लिए प्राकृतिक आश्रय स्थलों के रूप में काम करती थीं। प्राचीन गुफाएं हमें उस समय के मानव जीवन, उनकी कला, और उनके धार्मिक विश्वासों की जानकारी देती हैं। वहीं ऐसी कई गुफाएं मिलती हैं, जिनमें आदिम मनुष्यों के अवशेष, औजार और शिकार के साधन पाए गए हैं।
मानव सभ्यता के विकास के साथ गुफाओं का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ा। गुफाओं में मंदिर, मठ, और धार्मिक स्थल बनाए जाने लगे। ये गुफाएं तपस्वियों, संतों और साधकों के लिए ध्यान, साधना और तप का स्थान बन गईं। प्राचीन यूनानी सभ्यता में प्रसिद्ध डेल्फी गुफाएं होती थीं। यहां पर भविष्यवाणी करने वाली पुजारिन निवास करती थीं। फ्रांस की लास्को गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की मानी जाती हैं।
भारत में आध्यात्मिक गुफाओं को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि सदियों से ऋषि-मुनि और साधक हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित गुफाओं में निवास करते थे। इन गुफाओं में वे अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान और साधना किया करते थे। गुफाएं आध्यात्मिक साधना के लिए आदर्श स्थान मानी जाती रही हैं। ये स्वाभाविक रूप से एकांत और शांत स्थान प्रदान करती हैं, जहां साधक बाहरी दुनिया के विक्षेपों से दूर होकर ध्यान और साधना में लीन हो सकते हैं। यहां मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए आदर्श वातावरण मिलता है। दरअसल, ये प्राकृतिक संरचनाएं होती हैं, जो मनुष्य को प्रकृति के साथ गहरे संबंध का अनुभव कराती हैं।
उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में कई प्रसिद्ध गुफाएं हैं, जो धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से उल्लेखनीय हैं। ये गुफाएं न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा हैं। हर गुफा का अपना विशेष महत्व है और इनकी यात्रा साधकों और पर्यटकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। निःसंदेह, हिमालय की अनेक गुफाएं अपने दिव्य आध्यात्मिक स्पंदनों से भरपूर हैं। यहां बहुत से ऋषि-मुनि, तपस्वी और साधक ब्रह्मतत्व की खोज में लगे हैं।
इन गुफाओं में से एक रानीखेत के निकट दूनागिरी पर्वत पर स्थित महावतार बाबाजी की गुफा का विशेष स्थान है। इस गुफा का संबंध महावतार बाबाजी की दिव्य उपस्थिति और उनके द्वारा क्रिया योग की पुनर्स्थापना से जुड़ा है। यह स्थान पवित्र क्रिया योग का उद्गम स्थल है, जिस कारण यह अन्य गुफाओं से विशिष्ट है। इसी स्थान पर बाबाजी ने 19वीं शताब्दी में लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग की दीक्षा दी थी। इस दिव्य घटना ने इस गुफा को एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।
महावतार बाबाजी की गुफा के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व की विस्तार से जानकारी परमहंस योगानंदजी द्वारा रचित उनकी आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ के अध्याय 34 के ‘हिमालय में महल का सृजन’ पाठ में दी गई है। इसी गुफा में श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की बाबाजी से प्रथम भेंट हुई थी। सन् 1861 के शरद ऋतु के दिन थे। एक दैवीय योजना के तहत महावतार बाबाजी ने अपने पूर्व जन्म के गंगाधर नाम के शिष्य रहे लाहिड़ी महाशय को इस गुफा में बुलाया और क्रिया योग की दीक्षा दी।
परमहंस योगानंदजी अपनी आध्यात्मिक क्लासिक ‘एक योगी की आत्मकथा’ में लिखते हैं- लाहिड़ी महाशय को दीक्षा प्रदान करते हुए बाबाजी ने कहा ‘इस 19वीं शताब्दी में जो क्रिया योग मैं विश्व को तुम्हारे माध्यम से दे रहा हूं, यह उसी विज्ञान का पुनरुत्थान है जो श्रीकृष्ण ने सहस्राब्दियों पहले अर्जुन को दिया था।’ इस प्रकार यह गुफा महावतार बाबाजी की दिव्य उपस्थिति, लाहिड़ी महाशय के पूर्व जन्म की साधना, और आधुनिक युग में क्रिया योग विज्ञान के पुनरुत्थान की साक्षी बनी।
गुफा के वातावरण से समस्वर होने के लिए आगंतुकों को महावतार बाबाजी, क्रिया योग और लाहिड़ी महाशय के बारे में जान लेना चाहिए। इसके लिए परमहंस योगानंदजी द्वारा रचित ‘एक योगी की आत्मकथा’ के अध्याय 33, 34, 35, तथा एसआरएफ की पूर्व अध्यक्ष श्रीश्री दया माता जी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘केवल प्रेम’ में ‘महावतार बाबाजी का आशीर्वाद’ शीर्षक के पाठ पढ़ने से सहायता मिल सकती है। इन पुस्तकों को पढ़ने से देश-विदेश के बहुत से जिज्ञासु पर्यटक गुफा में दिव्य अनुभूति पाने आते हैं।
गुफा कैसे पहुंचे
सबसे पहले द्वाराहाट पहुंचें। द्वाराहाट उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित एक छोटा-सा शहर है। यह रानीखेत से लगभग 32 किलोमीटर दूर है। द्वाराहाट से टैक्सी द्वारा कुकुछीना गांव पहुंचे। यह द्वाराहाट से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। यहां से दूनागिरी पर्वत पर गुफा तक पहुंचने के लिए पहाड़ी रास्ते पर पैदल चलना होता है। गुफा तक का यह सफर लगभग 3 किलोमीटर का होता है, जिसमें लगभग एक घंटा लगता है। गुफा में प्रवेश निःशुल्क है। गुफा गर्मियों में (1 मार्च से 30 सितंबर) सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक और सर्दियों में (1 अक्तूबर से 28 फरवरी) सुबह 10 बजे से संध्या 3:30 तक खुलती है। यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर है। रास्ते में कोई रेस्टोरेंट वगैरह नहीं है, इसलिए नाश्ता और पानी साथ ले जाएं। हां, स्थानीय गाइड आपकी यात्रा को सुगम बनाएंगे।
गुफा या उसके आसपास के स्थान पर पवित्रता बनाए रखने की सलाह दी जाती है। वहां व्यक्तिगत गतिविधियों जैसे जोर-जोर से हंसना, बातें करना से बचना चाहिए। गुफा शांति और ध्यान साधना के लिए है, इसलिए अनुशासित रहने को कहा जाता है।
दरअसल, महावतार बाबाजी की गुफा केवल एक प्राकृतिक स्थल नहीं है, बल्कि एक ऐसा आध्यात्मिक धरोहर स्थल है जो साधकों के लिए गहन ध्यान और आत्मिक विकास का प्रतीक है। साधकों को यहां दिव्य अनुभव होते हैं। यह गुफा धार्मिक और आध्यात्मिक साधकों के लिए एक तीर्थ यात्रा, ध्यान और आत्मान्वेषण के लिए है। यहां बिताया गया समय मनुष्य के आंतरिक संसार और जीवन के गहरे रहस्यों को समझने में मदद करता है। गुफा की पवित्र यात्रा पर जाने से पहले उसके उद्देश्य को समझना जरूरी है। परमहंस योगानंदजी कहते हैं, ‘यदि आप उन स्थानों पर जाते हैं जहां गुरु रहते थे, तो वहां के कंपन आपके बोध को तीव्र कर देंगे। पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा का यही महत्व है। जो लोग साधनारत हैं, वे उस उपस्थिति को महसूस करेंगे। लेकिन पहले, व्यक्ति को ध्यान करना होगा और खुद को तैयार करना होगा।’
इस प्रकार, महावतार बाबाजी की गुफा एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थल है, जो न केवल धार्मिक साधकों बल्कि आत्मिक खोज में रुचि रखने वाले सभी व्यक्तियों के लिए एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है। गुफा की यात्रा करने से पहले इसके आध्यात्मिक महत्व को समझना और खुद को मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुफा के पवित्रता और शांत वातावरण में समय बिताने से आप अपने अंदर की गहराई को महसूस कर सकते हैं और एक नई आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त कर सकते हैं। यह यात्रा आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। आपके आध्यात्मिक दृष्टिकोण को समृद्ध कर सकती है।