राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान यह उन दिनों की बात है जब फ्रंटियर गांधी कहलाने वाले अब्दुल गफ्फार खां अविभाजित भारत की डेरा इस्माइल खान जेल में बंदी थे। उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिये सख्त जेल की सजा दी गई थी। उन्हें रोज बीस किलो गेहूं पीसने की सज़ा दी गयी थी। यह उनके लिए बेहद कष्टकारी था। यदि वे ऐसे न कर पाते तो उनकी सजा और सख्त कर दी जाती। यह देखकर अनाज पीसने वाले विभाग के अंग्रेज अधिकारी को उन पर दया आ गई। उसने सुझाव दिया कि वे रोज बीस किलो गेहूं की बजाय दस किलो गेहूं तथा दस किलो आटा उनके पास भिजवा देंगे ताकि बड़े जेल अधिकारियों को लगे कि उन्होंने बीस किलो आटा पीस दिया है। लेकिन अब्दुल गफ्फार खां ने दस किलो आटा वापस लौटा दिया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारी से कहा कि दस किलो गेहूं पीसने से बचने से मेरे शरीर को तो राहत मिल जाएगी, लेकिन मेरी आत्मा पर इस बेईमानी से पड़ने वाले दाग को कौन धो पाएगा?
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा