रमेश बग्गा चोहला
मानवीय समानता, आपसी भाईचारे और सबके भले की कामना करने वाले सिख धर्म में जहां गुरुओं ने परिवारों समेत बड़ी कुर्बानियां दीं, वही उनके प्यारे सिखों ने भी तन, मन और धन के साथ बहुमूल्य सेवाएं की हैं। ऐसी सेवाओं में ही शामिल है श्री गुरु गोबिंद सिंह के एक सच्चे सिख दीवान टोडर मल की सेवा। दीवान टोडर मल सरहिंद के एक धनवान व्यापारी थे। जिस हवेली में वह रहते थे उसको ‘जहाज महल’ के नाम से जाना जाता है। दिसंबर 1704 ई. में मुगल हुकूमत द्वारा छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी को शहीद कर देने के बाद एक शाही फरमान जारी कर दिया गया कि सरकारी जमीन पर साहिबजादों और माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता। शर्त रख दी गयी कि अंतिम संस्कार करना है तो उसके लिए जमीन खरीदनी पड़ेगी। जितनी जमीन की जरूरत है, उस पर सोने के सिक्कों (अर्शफियों) को सीधा खड़ा करके कीमत चुकानी होगी।
इस संकट में दीवान टोडर मल अपनी जिंदगी को खतरे में डाल कर आगे आए और पूरे सम्मान के साथ संस्कार करने के लिए जितनी जमीन चाहिए थी, उस पर सोने के सिक्के खड़े कर दिये। एक अनुमान के अनुसार उस जमीन को खरीदने के लिए लगभग 78000 सोने के सिक्कों की आवश्यकता थी। जमीन की कीमत चुका कर उन्होंने बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और दादी माता गुजरी जी का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया। अपनी दौलत गुरु के परिवार और प्यार के लिए कुर्बान करके दीवान टोडर मल सिख इतिहास में सदा के लिए अमर हो गये।