हमारे हाथों की रेखाएं हमें वहां तक भेज ही देती हैं जहां तक जाना होता है। किंतु हमारे कर्म हमें वहां तक ले जाएंगे, जहां हमें जाने की इच्छा होती है। अपने कर्मों से हम अपना भाग्य बदल सकते हैं साथ ही अगर हमारे कर्म किसी की भलाई के लिए हैं तो उनका परिणाम और भी अच्छा होता है।
अलका ‘सोनी’
इस संसार में और हमारे जीवन में घटित हो रही घटनाओं और बदल रही परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। हम उन्हें घटने से नहीं रोक सकते हैं। लेकिन इस संपूर्ण सृष्टि में जिस वस्तु पर हमारा सबसे ज्यादा नियंत्रण है या हो सकता है तो वह है हमारे अपने कर्म। यह मनुष्यों का सबसे बड़ा सौभाग्य है कि उनके कर्म, स्वयं उनके वश में होते हैं। हम उन्हें सुधार या बिगाड़ सकते हैं। हमारे जीवन की दिशा और दशा कर्मों पर निर्भर करता है।
हम जब इन्हें ठीक कर देते हैं तो न केवल हमारी सोच अच्छी हो जाती है, बल्कि हमारी पूरी जिंदगी ही बदल जाती है। प्रत्येक कर्म बीज के समान होता है। जैसा बीज हम बोएंगे, वैसा ही फल पाएंगे।
इस दुनिया में कोई भी इंसान अपने जन्म से भाग्यशाली नहीं होता। उसे भाग्यशाली बनाते हैं उसके ‘कर्म’। इसलिए कभी भी मनुष्य को अपने स्थान पर, अपने रूप पर या अपने कुल पर गर्व नहीं करना चाहिए। उसे अगर गर्व करने की जरूरत है तो केवल अपने कर्म पर। क्योंकि भगवान भी उन्हीं का साथ देते हैं जिनके साथ उनके अच्छे कर्म होते हैं।
कितनी बार हमें ऐसा लगता है कि शायद भगवान भी हमारा साथ नहीं दे रहे हैं। जीवन में सब कुछ विपरीत ही होता चला जा रहा है। हम चीजों को परिस्थितियों को जितना ही संभालने की कोशिश करते हैं वह उतनी ही बिगड़ती चली जाती हैं। हमारा मनोबल अंदर से टूटता सा प्रतीत होने लगता है। इन परिस्थितियों में हमारे अपने भी साथ छोड़ जाते हैं।
अंदर ही अंदर हम दुखी भी हो जाते हैं। लगने लगता है कि क्या फायदा इतने दिनों के अच्छे कर्मों का। या फिर सबके साथ किये अच्छे व्यवहार का क्या फल मिला हमें!
परंतु ऐसा कतई नहीं है। हमें हमारे अच्छे और बुरे दोनों कर्मों का फल अवश्य मिलता है। जिस तरह चिकित्सक किसी घाव को ठीक करने के लिए ऊपर से शल्य क्रिया करता है तो हमें दर्द का अनुभव होता है। हम उस दर्द से तिलमिला जाते हैं और हम चिकित्सक पर ही नाराज हो जाते हैं कि उन्होंने कितनी निर्ममता से हमारे जख्मों को रगड़ दिया है।
लेकिन ऐसा भी होता है कि अगर चिकित्सक उस जख्म को उस तरह कठोरता से साफ न करें तो वह जख्म अंदर ही अंदर कैंसर जैसे जानलेवा रोग में परिवर्तित हो सकता है। एक चिकित्सक को हमेशा पता होता है कि उसके मरीजों का इलाज कैसे किया जा सकता है। साथ ही किसी भी घाव को किस तरह से साफ करना है। यह वह बहुत अच्छी तरह से जानता है। हमें अपने चिकित्सक पर आंख बंद करके भरोसा करना चाहिए।
ठीक उसी तरह भगवान भी इस सृष्टि के चिकित्सक ही है। वे जानते हैं कि उनके बच्चों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है। उनके द्वारा किए गए हमारे जख्मों की सफाई पर कभी-कभी हम उन्हें भला-बुरा भी कह देते हैं हमें लगता है कि वह हमारे साथ सही नहीं कर रहे हैं। हमें तकलीफ दे रहे हैं। हमारे कष्टों की ओर उनका ध्यान नहीं हो रहा है। लेकिन ऐसा तो नहीं होता न। भगवान हमेशा जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। उसी के हिसाब से हमारे साथ घटनाएं घटित होती जाती है।
अगर हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो भगवान हमें विकट परिस्थितियों और बुरे इंसानों से दूर कर ही देते हैं। अब भले इस दूरी को लाने के क्रम में हमें कुछ और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। अंततः हमें भगवान उन गंभीर दुखद परिस्थितियों से बाहर निकाल ही देते हैं। लेकिन इन सब के लिए सबसे जरूरी है कि हमारे कर्म अच्छे हो। ऐसा नहीं है कि हम खराब कर्म करेंगे तो सुखी रहेंगे और अच्छे कर्म करेंगे तो दुखी रहेंगे।
अपने कर्मों को अच्छे रखना इस संपूर्ण सृष्टि का सबसे बड़ा धर्म है। क्योंकि जीवन का फल कर्मानुसार मिलता है धर्मानुसार नहीं। धर्म जो भी हो लेकिन हमारे कर्म अच्छे होने चाहिए। कर्म का सारा दारोमदार अपने कंधों पर होता है और फल का सारा दारोमदार ऊपर वाले के हाथों में होता है।
हमारे हाथों की रेखाएं हमें वहां तक भेज ही देती हैं जहां तक जाना होता है। किंतु हमारे कर्म हमें वहां तक ले जाएंगे, जहां हमें जाने की इच्छा होती है। अपने कर्मों से हम अपना भाग्य बदल सकते हैं साथ ही अगर हमारे कर्म किसी की भलाई के लिए हैं तो उनका परिणाम और भी अच्छा होता है।
शायद इसलिए कर्म को पूजा माना जाता है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त जीवन बहुत सुंदर है। सुखी जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी चीजें हमें पहले ही प्राप्त हो जाती हैं। हालांकि, अधिकांश लोग जीवन के इस पहलू को नहीं समझ पाते हैं और बुरे तरीकों का पालन शुरू कर देते हैं। जिसका नतीजा उन्हें भुगतना ही पड़ता है। इसलिए हमें अपने कर्मों को पूजा की तरह लेना चाहिए।
जिस तरह पूजा करते समय हम उसमें किसी तरह का कोई घालमेल या मिलावट नहीं करते हैं। बिल्कुल समर्पण और पूर्ण शुद्ध मन के साथ हम पूजा करते हैं। उसी तरह हमें अपने कर्मों को भी पवित्र और बिना किसी मिलावट की रखना चाहिए। तभी हमें शांतिपूर्ण मन और आत्मा और एक सुखी जीवन प्राप्त होता है। यह हमें जीवन का असली आनंद तो देता ही है साथ ही हमें महानता की ओर ले जाता है। काम ही जीवन का सच्चा सार है जो महान विचारों को दिमाग में लाता है और लोगों को महान व्यक्ति बनाता है।
कर्म वास्तव में मनुष्य की पूजा है क्योंकि कर्म के बिना वह पृथ्वी पर जीवित ही नहीं रह सकता। यह हमारे कर्म ही है जो हमें नई पहचान, नया चेहरा और जीवन को एक अर्थ देता है। कर्म के बिना जीवन निष्क्रिय और नीरस हो जाएगा। महान सभ्यताओं और संस्कृतियों को केवल प्रतिबद्ध कर्म के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि मनुष्य ईश्वर की सबसे बुद्धिमान, कुशल और सक्षम रचना है जो कठिन परिश्रम से कुछ भी संभव कर सकता है। इसीलिए भगवान ने मनुष्य को कर्म से नवाजा है। मनुष्य अपने मस्तिष्क के उपयोग से सही कर्मों को तय कर सकता है।
राष्ट्र और मजबूत हो जाता है जब उसकी श्रम शक्ति पूरी तरह से और उपयुक्त रूप से नियोजित हो जाती है। हमारे क्षेत्र में पूरी प्रतिबद्धता से काम करने से हमें वास्तविक शांति और संतुष्टि मिलती है जो हमें निरंतर सफलता की ओर ले जाती है। लगातार कर्म हमें दिन-प्रतिदिन सक्षम बनाते हैं। जिससे हमारे आत्मविश्वास का विकास होता है। लेकिन हमें अपने भीतर सुधार और स्थिरता के लिए कर्म करने चाहिए, न कि किसी पुरस्कार या गौरव की लालसा के लिए। धार्मिक संस्थानों में जाकर घंटों की की गई पूजा से भी वह प्रतिफल नहीं मिलता है जो कि मनुष्य अपने सही कर्मों से प्राप्त कर सकता है। जिनके कर्म अच्छे होते हैं उनके लिए उनका मन ही मंदिर हो जाता है।
दुनिया भर के विकसित राष्ट्र जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, चीन, जर्मनी आदि केवल अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से की गई मेहनत से ही आज विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़े हैं। हमें अपना और अपने देश का कल्याण करना है तो हमें अपने कर्मों पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए। साथ ही उच्च कर्म करने चाहिए। हमें यह नहीं देखना चाहिए कि हमारे कर्म की आयु कितनी है क्योंकि ओक का पेड़ वर्षों तक जिंदा रहता है। लेकिन जब यह नीचे गिरता है तो इसकी लकड़ी खोखली होती है और हमारे लिए बिल्कुल बेकार होती है। आलसी और बेकार बैठे लोगों के पास भगवान भी नहीं जाते मदद के लिए। हमारे कर्म ही हमें नित्य जीवन में आगे बढ़ाते रहते हैं। काम करने से हमारे शरीर और दिमाग का भी एक अच्छा व्यायाम हो जाता है जो कि हमारे जीवन में वास्तविक आनंद लाता है।