आचार्य दीप चन्द भारद्वाज
हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में चार प्रकार के नवरात्रों का विधान किया गया है। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि, चैत्र मास में आने वाले नवरात्रि तथा शारदीय नवरात्रि। ये चारों नवरात्रि विशेष रूप से ऋतु चक्र पर आधारित हैं। हमारे शास्त्रों में जो यह नवरात्रों का विधान किया गया है वह पूर्ण रूप से शरीर विज्ञान को ध्यान में रखकर किया गया है। वर्ष के दो मुख्य नवरात्रे मार्च और सितंबर मास के संधिकाल में आते हैं और उस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं अतः उस समय स्वस्थ रहने के लिए शरीर को शुद्ध रखने के लिए, मन को निर्मल और पूर्णतया स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम नवरात्र है।
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी नवरात्र नाम सार्थक है क्योंकि यहां रात गिनते हैं इसलिए इसे नवरात्र यानी नवरात्रों का समूह कहा जाता है। हमारे शरीर के नौ मुख्य द्वार माने गए हैं और इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इसी शक्ति को नमन करते हुए कहा गया है कि ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।’
हमारे शरीर की इंद्रियों में अनुशासन, स्वच्छता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में शरीर तंत्र को पूरे वर्ष भर के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन तक मनाया जाता है। नवरात्रि विशेष रूप से परमेश्वर स्वरूपा आदि शक्ति दुर्गा की उपासना को समर्पित है। जब देवता असुरों से परास्त हो गए तब उन्होंने इस आदिशक्ति का आह्वान और प्रार्थना की थी। जिसके बाद उस आदिशक्ति देवी ने प्रकट होकर असुरों का संहार किया था। इसी पावन स्मृति में शारदीय नवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रों के नौ दिनों में विशेष रूप से संयम, सात्विकता के साथ देवी के नौ रूपों का आराधन किया जाता है। सभी नवरात्रों का आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व है। तंत्र विद्या की सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है। आत्मा शुद्ध और मुक्ति के लिए चैत्र नवरात्रों का विधान है। शारदीय नवरात्र वैभव और भोग प्रदान करने वाले माने गए हैं। हमारे शास्त्रों में नवरात्र को साधना का महापर्व कहा है। इन नौ दिनों में मनोयोगपूर्वक की गई साधना से सिद्धि प्राप्त होती है। साधना से शुद्धि भी मिलती है। शारदीय नवरात्रि हमारे अंतस में व्याप्त इस चेतना शक्ति को अनुभव करने का स्वर्णिम अवसर है।
हमारी चेतना में सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण तीनों प्रकार के गुण व्याप्त हैं। प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहा गया है। इन नौ दिनों में पहले तीन दिन तमोगुण प्रकृति की आराधना करते हैं। दूसरे तीन दिन रजोगुण की और आखिरी तीन दिन सतोगुणी प्रगति की आराधना का महत्व है। इस प्रकार नवरात्रि के यह नौ दिन हमारे मन में इन तीन गुणों का शुद्धीकरण करने के दिन है। तमस, रजस, सत्व से गुंथी हुई मनुष्य की प्रकृति अज्ञानता और मोह के कारण परिभ्रमण में उलझी हुई है। इन नौ दिनों में क्रमशः इन तीनों में शुद्धीकरण करके मनुष्य के भीतर नवनिर्माण की संभावना को सुदृढ़ किया जाता। दरअसल, शारीरिक और मानसिक पवित्रता के साथ ध्यान, मंत्र जाप प्रार्थना से इन नौ दिनों में विशेष प्रकार की आध्यात्मिक उपलब्धियां अर्जित की जा सकती हैं। इन पावन नौ दिनों तक सात्विक आहार के माध्यम से शारीरिक शुद्धि, देवी की उपासना और मंत्र जाप से मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है जिससे आध्यात्मिक साधना का मार्ग प्रशस्त होता है। मानव के भीतर और इस संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त उस चैतन्य शक्ति दुर्गा को अनुभूत करने का यह शारदीय नवरात्रि उत्कृष्ट समय है। विधिपूर्वक, संयम और एकाग्रता से संपन्न किया गया यह नौ दिन का उत्सव हमारी आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करता है।