एक बार अल्बर्ट आइंस्टाइन जीवन का सूत्र समझाते हुए बता रहे थे कि आप अपने अहंकार को कूड़ेदान में फेंक कर बिल्कुल ही बच्चे बन जाइए। आपकी रंगत लौट आएगी। आप पेन बनकर जिद्दी नहीं बनें। एक ‘पेन’ गलती कर सकता है। लेकिन एक ‘पेन्सिल’ गलती करके भी सीना चौड़ा करके खड़ी रह सकती है, क्योंकि उसके साथ गलती मिटाने को उसका दोस्त ‘रबड़’ जो होता है। चर्चा के दौरान एक युवक ने पूछा कि महोदय इंसान कितना भी अमीर क्यों न हो जाए, तकलीफ बेच नहीं सकता, सुकून खरीद नहीं सकता। उत्तर में आइंस्टाइन ने कहा, ‘यह एकदम दुरुस्त बात है। इसका उपाय यह है कि सुकून हमेशा आप और हम से ही मिलता है। ‘मैं’ इतना घातक है कि यह जीवन में किसी भी खुशी और आनंद को नहीं आने देता है।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे