एक बार स्वामी विवेकानंद एक गांव में गये। उनके साथ सुशिक्षित युवकों का दल था। एक जगह एक आदमी किसी बालक को सूखे पत्ते बटोर कर दे रहा था और वह बालक उनको नदी में तैराते हुए ताली बजाकर नाच रहा था। बातचीत करने पर पता लगा कि यह बालक उस आदमी के खेत में मजदूर का बेटा है। विवेकानंद ने इस आचरण को देखकर उसी समय अपने दल के युवकों को समझाया कि देखो अमीरी-गरीबी कुछ नहीं होती है, हर एक को अपनी तरह से आनंद में होने, सामाजिक रहने का पूरा-पूरा हक़ है। स्वीकार्यता, सार्थकता, महानता की कोशिशें और दौड़ आदमी के मानसिक स्वास्थ्य को खराब करके उसको नुकसान पहुंचा देती है। इसलिए जो कुछ भी करके खुश हैं, सहज और नि:स्वार्थ भाव से काम करके, बिना किसी को दुख पहुंचाएं, सब सफल हैं, सब सार्थक हैं। यह एक महान संदेश था।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे