बात उन दिनों की है, जब स्वामी विवेकानंद बेलूर में ‘श्री रामकृष्ण परमहंस मठ’ की स्थापना में जी जान से लगे हुए थे। मठ के निर्माण के लिए भूमि खरीद ली गयी थी और धन जमा किया जा रहा था। ठीक उसी समय कलकत्ता में प्लेग फैल गया। रोज हजारों संख्या में लोग असमय मौत के मुंह में जाने लगे। स्वामी जी ने तुरंत मठ निर्माण योजना स्थगित कर दी और सारा धन लेकर रोगियों की सेवा में जुट गये। उनके एक सहयोगी ने कहा, ‘स्वामी जी, रुपये खर्च हो जाने पर मठ निर्माण कैसे होगा?’ स्वामी विवेकानंद ने सहज भाव से कहा, ‘मानव सेवा से बढ़कर और कुछ नहीं। यदि और धन की आवश्यकता हुई तो मठ की भूमि भी बेच दूंगा, पर जीवन और मृत्यु से संघर्ष करते रोगियों की सेवा में बाधा न आने दूंगा। मानव सेवा सबसे बड़ा काम है।’ प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प