समर्थ गुरु रामदास जिस समय मराठों के भीतर नवऊर्जा का संचार कर रहे थे, उसी समय उन के प्रिय शिष्य शिवाजी को कुछ अवसाद ने आ घेरा। रामदास ने शिवाजी को बुलाया और उनके साथ एक खुले स्थान पर बैठकर बोले, ‘शिवा वो देखो वह हवा कितनी नीच है उस तितली को उड़ा ले गयी।’ शिवाजी ने कहा, ‘गुरुवर हवा का दोष नहीं है वह तितली खुद उस तरफ उड़ रही है।’ ‘अच्छा, तो वह देखो वह सूखा पत्र कितना उमंग भरा उड़ान भर रहा है।’ शिवाजी पुनः बोले कि वह पत्र बेजान है। उसकी अपनी कोई मर्जी नहीं। यह सुनकर समर्थ गुरु रामदास ने कहा, ‘शिवा तुम इनमें से क्या हो, सूखा पत्ता या तितली?’ शिवाजी झट से गुरु का संकेत साफ समझ गये। वह पुनः पूरी ताकत से अपनी गुरिल्ला सेना को लेकर कंदराओं में अभ्यास करने लगे। इस तरह समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को मुगलों के खिलाफ लोहा लेने के लिए कृतसंकल्पित किया।
प्रस्तुति : पूनम पांडे