बहुत पहले की बात है। एक ग्यारह साल की बालिका का जीवन बदलने वाला था। उसे बाल विवाह या अपना उज्ज्वल भविष्य दोनों में से एक को चुनना था। यह होनहार बालिका रूक्माबाई थी। इस जागरूक बालिका ने बाल विवाह के बाद का विवाहित जीवन नकार कर आगे पढ़ने का फैसला किया। उनके इस विरोध के कारण अदालत में लंबा मुकदमा चला। आखिरकार अदालत ने उनके हक में फैसला दिया। इस तरह रूढ़िवाद के बंधन से मुक्त होने के बाद रुक्माबाई आजाद होकर अपनी पढ़ाई पर फोकस कर सकीं। इस बगावत के बाद इंग्लैंड जाकर उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की। साल 1894 में रुक्माबाई ने लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वीमेन से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन यानी एमडी की डिग्री हासिल की। वह देश की पहली महिला चिकित्सक बनीं। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे