सामाजिक बदलाव के अग्रदूत व कुष्ठ रोगियों के लिये समर्पित बाबा आमटे का जीवन संवारने में उनकी मां का विशेष योगदान रहा। बचपन में बाबा आमटे कुछ मन के अनुकूल न होने पर जल्द ही नाराज हो जाते। एक बार वे अपने प्रिय मित्र से किसी बात पर नाराज हो गये। फिर उन्होंने उससे बातचीत करना छोड़ दिया। मां ने देखा तो उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। उन्होंने बाबा आमटे को जीवन का सबक सिखाने का विचार बनाया। यह पतझड़ का मौसम था। मां, बालक आमटे को निकट के बाग में ले गई। उन्होंने कहा कि देखो बेटा इन वृक्षों को, ये अपने पुराने पत्तों को त्याग रहे हैं। नये जीवन की शुरुआत के रूप में नये पत्ते आकार ले रहे हैं। इसी तरह हमें भी सुखद जीवन के लिये मन के दुराग्रह व धारणाएं त्याग करके संबंधों को नए तरह से सींचना चाहिए। अप्रिय अनुभवों को पुराने पत्तों की तरह त्याग देना चाहिए। बालक आमटे पर मां की बात का गहरा प्रभाव पड़ा। वे अगले ही पल उस मित्र से मिलने पहुंचे, जिससे वे नाराज चल रहे थे। इस सीख से बाबा आमटे को अपनी दृष्टि संवारने में मदद मिली।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा