मुग़ल बादशाह औरंगजेब कला और प्रकृति प्रेमी भी था। एक दिन बादशाह को ख़बर मिली कि जामा मस्जिद के आंगन में आग लग गई है। आग पर जैसे-तैसे तुरंत काबू पाकर वज़ीरे आज़म को दरबार में तलब किया गया। वज़ीर बादशाह के गुस्से से वाकिफ़ था। अतः वह घबराया हुआ दरबार में उपस्थित हुआ और सिर झुका कर खड़ा हो गया। औरंगजेब ने उससे पूछा, ‘आग से आंगन की हरियाली को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचा ना, सभी पेड़-पौधे सही-सलामत हैं ना?’ वज़ीर ने हिचकिचाते हुए कहा, ‘जहांपनाह, आपने मस्जिद की खैर ख़बर तो ली नहीं और पेड़-पौधों पर अपना प्रेम उड़ेल रहे हैं। यह बात कुछ समझ नहीं आई।’ औरंगजेब गम्भीरता से बोला, ‘भाई जान, हमारी हर सांस इसी हरियाली पर निर्भर करती है। मस्जिद के नुकसान को तो कुशल कारीगर संवार देंगे, मगर यदि कोई वृक्ष जल गया हो तो क्या उसे दुबारा हरा-भरा किया जा सकता है। इसलिए हम सबको इन जीवनरक्षक वृक्षों की हिफाज़त अपने प्राणों की तरह करनी चाहिए।’ प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन