महान संत तिरुवल्लुर अपनी कुटिया में भजन करते रमे रहते। फिर भी कुछ नामी लोग अपने बाल बच्चों को उनके पास कुछ समय के लिए छोड़ जाते ताकि कुछ सीख मिले। एक बार तो इतने बालक आ गये कि उनके समूह बनाने पड़ गये। एक चौदह साल का किशोर था। उसको केवल यह काम दिया गया कि वह सबकी रखवाली करे। अब वह तो नेता बन गया। भागकर तिरुवल्लुर के पास गया और शिकायत करने लगा। गुरुवर, वह देखो। वह जो समूह है न। बस, समय काट रहा है। और उधर वह देखो। उस समूह को तो बगीचे में गोल-गोल रमण कर रहा है और कुछ नहीं।’ ‘देखो! प्रिय यह बस खालीपन है आखिर तुम इतने खाली क्यों हो?’ वह किशोर उनको देखता रह गया। तिरुवल्लुर ने समझाया, ‘चौदह साल के हो और खुद के खालीपन से अनजान हो। इसको भरते नहीं। यह बताओ कि खाली पेट वाला जानवर कहां फंसता है?’ ‘वह पिंजरे में फंसता है।’ किशोर ने जवाब दिया। ‘अच्छा, यह बताओ कि खाली दिमाग वाला इंसान।’ ‘एकदम बेकार और बकवास कामों के जाल में…!’ ‘ओह, सच’। इतने संकेत से ही वह किशोर तिरुवल्लुर से जीवन का मंत्र सीख चुका था।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे