एक दिन बाग में बैठा कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूं। मेरी आवाज भी अच्छी नहीं है, और न ही मेरे पंख सुंदर हैं। ऊपर से रंग भी काला है। उसमें हीनभावना भरने लगी और वह रोज दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा, ‘तुम कितने सुंदर हो, गोरे हो और मैं तो… बिल्कुल काला हूं। मेरा तो जीना ही बेकार है।’ बगुला बोला, ‘मैं कहां सुंदर हूं। जब तोते की ओर देखता हूं तो यही सोचता हूं कि मेरे पास भी हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है।’ कौए में सुन्दरता को जानने की जिज्ञासा बढ़ी तो वह तोते के पास गया। कौआ बोला, ‘तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश होंगे?’ तोता बोला, ‘खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूं। वह तो मेरे से भी ज्यादा सुन्दर है।’ अब कौआ मोर को ढूंढ़ने लगा तो पता चला कि जंगल के सारे मोर चिड़ियाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं। कौआ चिड़ियाघर गया, वहां पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की, तो मोर रोने लगा। मोर बोला, ‘शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो, तभी आजादी से घूम रहे हो वरना तुम भी मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी