सुरेखा शर्मा
यह सर्वविदित है कि बिना शक्ति के कोई भी कार्य ठीक प्रकार से संपन्न नहीं हो सकता। ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप देखकर ही उसकी पूजा-अर्चना के लिए भारतीय समाज में नवरात्र महोत्सव बहुत ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यह नौ देवियों की शक्तियों से संयुक्त है। इसकी एक-एक तिथि को एक-एक शक्ति के रूप में पूजन का विधान है। साधकों की भाषा में यही दुर्गा के नौ स्वरूप हैं- जिनसे यह शक्ति समस्त विश्व में व्याप्त है। वह आद्य शक्ति महामाया त्रिदेव की भांति महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपत्रय संपन्न है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार इनके नाम- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
नवरात्र में देवी उपासक इन्हीं नौ रूपों की पूजा-अर्चना आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्ति का संचय करने के उद्देश्य से करते हैं। वैसे तो पौराणिक साहित्य में वर्ष में चार बार नवरात्र का उल्लेख मिलता है, जो क्रमशः चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा माघ शुक्ल पक्ष में आयोजित होते हैं, लेकिन इनमें से दो को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही विशेष रूप से मनाने का प्रावधान है। ऋतु विज्ञान के अनुसार ये दोनों ही मास सर्दी व गर्मी के संधि मास हैं। सर्दी का पदार्पण आश्विन मास में होता है और गर्मी का चैत्र में। ऋतु परिवर्तन का प्रभाव स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसलिए विद्वानों ने इन महीनों में शरीर को पूर्णतः स्वस्थ रखने के लिए नौ दिन तक विशेष व्रत रखने का उल्लेख किया है। नवरात्र का विधिवत्ा् अनुष्ठान जहां शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है, वहीं मानसिक शक्ति में भी वृद्धि करता है। इन नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती, देवी भागवत, रामचरितमानस, रामायण का पाठ किया जाता है, जो सुप्त आत्माओं में प्राणों का संचार करते हैं। शास्त्रानुसार नौ दिन तक फलाहार करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन कर अपने जीवन को शक्तिशाली बनाना चाहिए।
चैत्र और आश्विन दोनों महीने कृषि प्रधान हैं, जो भारतीयों के जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। चैत्र में आषाढ़ी फसलें गेहूं सरसों व चने और आश्विन में धान आदि घर आने लगती हैं। अब स्वाभाविक है कि इन अवसरों पर घर में कोई न कोई अनुष्ठान व यज्ञ तो होना ही चाहिए, जो हम नवरात्र के माध्यम से करते हैं। नये अन्न से सर्वप्रथम विश्व के जन्मदाता को भोग लगाकर अपने मन में सात्विक भावों को जन्म देते हैं।
ऐसे हुआ महिषासुर का वध
दुर्गा सप्तशती के अनुसार दैत्यराज महिषासुर जब त्रिदेव से भी पराजित नहीं हुआ तब सभी देवताओं के सम्मिलित तेज और शक्ति से देवी दुर्गा प्रकट हुईं। सभी देवी-देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया। महेश ने अपना त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, काल ने तलवार, विश्वकर्मा ने फ़रसा, वरुण देव ने पाश, ब्रह्मा ने वेद तथा हिमालय ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसके अतिरिक्त समुद्र ने रत्नजड़ित हार, कभी न खराब होने वाले दिव्य वस्त्र, कुंडल, कंगन, नूपुर एवं अंगूठियां भेंट की। इन सभी अलंकारों को धारण कर मां दुर्गा ने महाशक्तिशाली तथा अत्याचारी असुर महिषासुर के साथ अनवरत नौ दिन तक युद्ध कर उसका वध किया।